तिरुमालै आण्डान (मालाधर स्वामी)

श्रीः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद् वरवरमुनये नमः
श्री वानाचल मुनये नमः

thirumalai-andan

तिरुनक्षत्र:   कुम्भ मास, मघा नक्षत्र
अवतार स्थल: तिरुमालिरुन्चोलै
आचार्य: आळवन्दार
शिष्य: श्री रामानुजाचार्य (ग्रन्थ कालक्षेप शिष्य)

तिरुमालै आन्डान् आलवन्दार के मुख्य शिष्यों मे एक थे । वे मालाधर और श्री ज्ञानपूर्ण स्वामी के नामों से सुपरिचित थे ।

आळवन्दार एम्पेरुमानार (श्री रामानुजाचार्य) को हमारे सत्सम्प्रदाय के विभिन्न दृष्टिकोणों (विषय-तत्त्वों) को पढ़ाने के लिए अपने ५ प्रथम शिष्यों को निर्देश किये थे | उनमें से तिरुमालै आन्डान् को तिरुवाय्मोलि का अर्थ-शिक्षण की जिम्मेदारी दी गई थी| आलवन्दार के परमपद प्राप्ति और श्री रामानुजाचार्य के श्रीरंगम प्रवास होने के बाद तिरुकोष्टियूर नम्बि ने श्री रामानुजाचार्य को तिरुमालै आण्डान से तिरुवाय्मोलि का गुप्त-अर्थ एवं विशेषणों को समझने के लिये भेजे थे ।

pancha-acharyas

(श्री आळवन्दार इलायालवार (श्री रामानुजाचार्य) को पांच रहस्य सिखाने के लिए पांच नम्बी (आचार्यों) को नियुक्त कर रहे हैं)

तिरुमालै आण्डान ने जैसे आळवन्दार से तिरुवाय्मोलि के अर्थों को सुने वैसे ही श्री रामानुजाचार्य को व्याख्यान करते रहे | लेकिन कई बार, श्री रामानुजाचार्य ने कुछ श्लोकों (पासुरों) का अपना द्रुष्टिकोण (तिरुमालै आण्डान द्वारा बताया अर्थों से अलग अर्थ) प्रस्तुत किये । ऊसे सुनकर तिरुमालै आण्डान सोचते थे कि श्री रामानुजाचार्य स्वविचार, जो आलवन्दार के व्याख्याननुरूप से भिन्न है, को प्रस्तुत कर रहे थे । क्योंकि उन्होंने ऐसा निर्वचन आलवन्दार से कभी नहीं सुना था ।

इस तरह एक बार, आण्डान ने तिरुवाय्मोलि “२. ३. ३ – अरिया कालत्तुल्ले” पासुर की व्याख्या ऐसे किया – “आळ्वार सन्ताप से कह रहे हैं कि भगवान् श्रीमन्नारायण उनको निष्कलंक ज्ञान देने के बाद भी उसे इस शरीर के साथ इसी संसार में रखा है” । लेकिन श्री रामानुजाचार्य इसे दूसरे तरीके से (दूसरी पंक्ति पहले रखकर) देखे थे | उन्होंने कहा – कि वास्तव में यह पासुर में आल्वार के हर्षोत्फुल एवं सुखमय भाव अभिप्रेत है अर्थात् आलवार बहुत ख़ुशी में भगवान से कहते हैं कि “अनाधिकाल से मैं इस संसार में पीड़ित था | आपने मुझे इस अनायात से बचाया | क्योंकि इस दशक (१० श्लोक में) आलवार के पूर्ण आनंद का रहस्योद्घाटन करता है |” यह सुनकर आण्डान बहुत परेशान हुए और बोले थे कि ऐसे अर्थ को आळवन्दार से कभी नहीं सुना | जैसे विश्वामित्र मुनि ने त्रिशंगु महाराज के लिए एक नया लोक का निर्माण स्वयं किये थे , वैसे श्री रामानुजाचार्य नए अर्थों का सृजन कर रहे थे | ऐसे बोलकर उन्होंने अपना व्याख्यान भी बंद कर दिया | यह सुनकर तिरुक्कोष्टियूर नम्बी तुरंत तिरुक्कोष्टियूर से श्रीरंगम आये और आण्डान से इस घटने के बारे में पूछे | आण्डान बोले कि श्री रामानुजाचार्य आळवन्दार से अनसुना अर्थों को बताते हैं | जब आण्डान पूरी घटना बताये, तब नम्बी कहे कि वे स्वयं आळवन्दार से इसी अर्थ को सुना है और यह श्लोक (पासुर) का एक मान्य स्पष्टीकरण है | उन्होंने आगे कहा कि “जैसे भगवान् श्रीमन्नारायण (श्री कृष्ण) ने सांदीपनी मुनि से सीखा था , वैसे रामानुजाचार्य आप से तिरुवाय्मोलि सीख रहे हैं | आळवन्दार के विचार से भिन्न श्री रामानुजाचार्य कुछ् नहीं बोलेंगे । यह मत समझना कि श्री रामानुजाचार्य को जो भी आप सिखाते हैं वो उसे पहली बार सुन रहे हैं |” फिर वे आण्डान और पेरियनम्बी को श्री रामानुजाचार्य के मत में लाकर श्री रामानुजाचार्य को आण्डान से श्रवण पुनर्प्रारंभ करने की आवेदन किया |

इसके बाद, श्री रामानुजाचार्य अलग ढंग से एक और श्लोक (पासुर) का अर्थ बताये | आण्डान आश्चर्य से श्री रामानुजाचार्य को पूछे कि बिना आळवन्दार से मिले आप ऐसे अर्थविशेषों को कैसे समझते हैं ? श्री रामानुजाचार्य बोले कि जैसे एकलव्य के द्रोणाचार्य थे वैसे मुझे आळवन्दार हैं | (एकलव्य सीधे द्रोणाचार्य से मिले बिना उनसे सब कुछ सीखा था |) आण्डान श्री रामानुजाचार्य की महानता को समझे और उनको अपना सम्मान पेश किया | उनको ये सोचके बहुत हर्ष हुआ कि जो भी अर्थविशेषणों को आळवन्दार से वो सुन नहीं पाये वो सब सुनने का एक और अवसर मिला  |

ऐसे कई पासुर है जिनकी व्याख्या श्रवण में, आण्डान और श्री रामानुजाचार्य के विभिन्न दृश्यकोण (विचारों) को देख सकते हैं जो निन्मलिखित हैं :

तिरुवाइमोळि १.२ – नमपिल्लै व्याख्यान – “वीडुमिन मुट्रवुम्”  

परिचय अनुभाग – आळवन्दार से सुना आण्डान, श्री रामानुजाचार्य को इस दशक को प्रपत्ति योग का विवरण जैसे व्याख्यान किये | श्री रामानुजाचार्य भी आरम्ब में वही दृष्टिकोण का पालन किये | लेकिन श्री भाष्य पूरी करने के बाढ़ में उन्होंने इस दृष्टिकोण को बदलके इस दशक को भक्ति योग विवरण जैसे व्याख्यान करने लगे | श्री रामानुजाचार्य प्रपत्ति को “साध्य भक्ति” नाम से पृथक किये, क्योंकि प्रपत्ति योग सबसे गोपनीय है और आसानी से गलत व्याख्यान किया जा सकता है (“मैं हूँ भक्ति कर्ता और भोक्ता ” ऐसे अहंभाव के बिना सिर्फ श्रीमन्नारायण के आनंद के लिए जो भक्ति होता है वही साध्य भक्ति है) | यह साध्य-भक्ति उपाय/साधन-भक्ति से अलग है (जो अक्सर भक्ति योग नाम से प्रख्यात है ) | श्री गोविन्द पेरुमाळ भी श्री रामानुजाचार्य की ऐसे दृष्टिकोण का पालन किये |

तिरुवाइमोळि २.३.१ – नमपिल्लै व्याख्यानम् – “तेनुम पालुम् अमुदुमोत्ते कलन्दोळिन्दोम्

इस पासुर का व्याख्यान आण्डान ने ऐसे किया था – “आळ्वार बोलते हैं कि जैसे शहद और शहद या दूध और दूध स्वाभाविक रूप से अपने आप में मिश्रण होता हैं वैसे ही श्रीमन्नारायण और मैं समेकित हो गये |” लेकिन श्री रामानुजाचार्य उसका व्याख्यान ऐसे किये – आळ्वार कहते हैं कि हम (मैं और श्रीमन्नारायण) इस प्रकार मिले जिससे मधु, दूध और चीनी आदि मीठे सामग्री के मिश्रण से प्राप्त अमृतमय भोग्यवस्तु का पूर्ण अनुभव किये |

नाचियार् तिरुमोळि ११.६ व्याख्यान में पेरियवाचान् पिल्लै ने आण्डान का आचार्य भक्ति को स्वयं दिखाते हैं – आण्डान कहा करते थे कि “यद्यपि हमें इस शरीर और उससे संबंधित सारे बंधनों को छोड्ना चाहिये परन्तु मुझे इस शरीर की उपेक्षा करना अमान्य है, क्योंकि मुझे इस शरीर से ही आलवन्दार का संबंध प्राप्त हुआ।”

नायनार् आचान् पिल्लै ने अपने चरमोपाय-निर्णय ग्रन्थ में प्रदर्शन किये कि एक बार तिरुमालै आण्डान “पोलिग पोलिग” श्लोक (पासुर) (तिरुवाइमोळि ५.२) का व्याख्यान करते समय तिरुक्कोश्टियूर नम्बि घोष्टि (भक्त समूह) में प्रकट किये कि इस श्लोकम में वर्णित श्री रामानुजाचार्य ही है । इसे सुनकर  आण्डान को परमानंद की प्राप्ति हुई और श्री रामानुजाचार्य को तब से अपना आचार्य अलवन्दार मानकर यही घोषित किये । इस घटना के बारे में और जानकारी के लिए इस हाइपरलिंक को दबाएं – http://ponnadi.blogspot.in/2012/12/charamopaya-nirnayam-ramanujars-acharyas.html

आइये हम तिरुमाळै आण्डान के कमल चरणों में प्रणाम करें जो आळवन्दार और श्री रामानुजाचार्य से बहुत संलग्न थे ।

आण्डान् का ध्यान श्लोक 

रामानुज मुनीन्द्राय द्रामिडी सम्हितार्थदम् |
मालाधर गुरुम् वन्दे वावधूकम् विपस्चितम् || 

अडियेन् लक्ष्मी नरसिंह रामानुज दास

archived in https://guruparamparaihindi.wordpress.com, also visit http://ponnadi.blogspot.com/

Source: https://guruparamparai.wordpress.com/2013/02/24/thirumalai-andan/

Advertisement

3 thoughts on “तिरुमालै आण्डान (मालाधर स्वामी)

  1. Pingback: श्री-गुरुपरम्पर-उपक्रमणि – 2 | guruparamparai hindi

  2. Pingback: तिरुक्कोष्टियुर नम्बी (गोष्ठीपूर्ण स्वामीजी) | guruparamparai hindi

  3. Pingback: thirumAlai ANdAn (mAlAdhara) | AchAryas

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s