कोयिल् कोमाण्डूर् इळैयविल्लि आच्चान् (श्रीबालधन्वी गुरु)

श्री:
श्रीमते रामानुजाय नम:
श्रीमद् वरवरमुनये नम:
श्री वानाचल महामुनये नम:

komandur-ilayavilli-achanश्रीबालधन्वी गुरु– सेम्पोंसे कोइल, तिरुनांगूर

तिरुनक्षत्र: अश्लेषा नक्षत्र, चैत्र मास

अवतार स्थल: कोमाण्डूर

आचार्यश्री रामानुज स्वामीजी

स्थान जहां उनका परमपद हुआ: तिरूप्पेरूर

श्रीबालधन्वी गुरु (इळैयविल्लि) रामानुज स्वामीजी के मौसेरे भाई (श्रीगोविंदाचार्य स्वामीजी के जैसे) थे। उन्हें श्रीबालधन्वी गुरु के नाम से बुलाते थे। इळैयविल्लि / बालधन्वी का अर्थ श्री लक्ष्मणजी है – उन्होंने श्रीरामानुज स्वामीजी कि सेवा की, उसी तरह जैसे श्री लक्ष्मणजी ने श्रीरामजी कि सेवा की। वह श्रीरामानुज स्वामीजी द्वारा स्थापित ७४ सिंहासनाधिपति में एक हैं।

आपकी तनियन और वाली तिरुनामं से यह सिखा जाता है कि आप श्री शैलपूर्णा स्वामीजी से जुड़े हुए थे और आपने उनकी बहुत सेवा भी की थी।

चरमोपाय निर्णय में श्री नायनाराच्चान् पिल्लै ने श्रीबालधन्वी गुरु (श्री इळैयविल्लि) के महिमा को दर्शाया है। इसे हम अब देखेंगे।

जब श्री रामानुज स्वामीजी परमपद के लिये प्रस्थान किया उनके अनेक शिष्यों ने उनके वियोग में अपने प्राण त्याग दिया। श्रीकनीयनूर सीरियाच्चान रामानुज स्वामीजी के शिष्य थे, कुछ समय के लिये कैंकर्य हेतु अपने गाँव कणीयनूर में विराजमान थे। कुछ दिनों बाद श्रीरंगम की ओर श्री रामानुज स्वामीजी के पास उनकी सेवा के लिये जा रहे थे। जाते समय रास्ते में किसी श्रीवैष्णव से उन्होंने अपने आचार्य श्री रामानुज स्वामीजी के स्वास्थ के बारे में पूछा। तब श्रीवैष्णव ने श्री रामानुज स्वामीजी के परमपद गमन का समाचार सुनाया। यह सुनते ही उसी क्षण श्रीकनीयनूर सीरियाच्चान ने “एम्पुरुमानार तिरुवडिगले शरणम” (श्री रामानुज स्वामीजी के चरणारविंदोंकि शरण ग्रहण करता हूँ) कहकर परमपद के लिये प्रस्थान किया।

श्री इळैयविल्लि तिरुप्पेरूर में विराजमान थे। एक दिन उनके स्वप्न में श्री रामानुज स्वामीजी दिव्य विमान में विराजमान होकर आकाश की ओर बढ़ रहे थे। परमपदनाथ भगवान हजारों नित्यसूरीगण, श्रीशठकोप स्वामीजी, श्रीनाथमुनी स्वामीजी और अनेक आचार्यागण वाद्य गान करते हुये श्री रामानुज स्वामीजी का परमपद में स्वागत कर रहे हैं। वह यह देख रहे थे श्री रामानुज स्वामीजी का विमान परमपद की ओर प्रस्थान कर रहें हैं और सब उनके पीछे जा रहे हैं। वे  निद्रा से उठे और उनको पता चल गया कि क्या हुआ है। वह अपने पड़ोसी को बताते हैं “वळ्ळल् मणिवण्णं” कि “हमारे आचार्य श्री रामानुज स्वामीजी दिव्य विमान में विराजमान होकर परमपद कि ओर प्रस्थान कर रहे हैं और उनके साथ परमपदनाथ और नित्यसुरी भी हैं”। मैं उनकी अनुपस्थिति में यहाँ नहीं रह सकता। “एम्पुरुमानार तिरुवडिगले शरणम” कहकर परमपद के लिये प्रस्थान किया। ऐसे अनेक शिष्य थे जो श्री रामानुज स्वामीजी का वियोग सहन नहीं कर सके ओर अपना शरीर त्याग दिया। जो शिष्य श्री रामानुज स्वामीजी के अंतिम समय में उनके साथ थे उनको स्वामीजी ने आज्ञा दिया कि मेरे वियोग में शरीर त्यागना नहीं, आगे तुम लोगों को ही सम्प्रदाय का प्रचार प्रसार करना है। स्वामीजी की आज्ञा का पालन करते हुये अनेक शिष्यजन कैंकर्य मे लग गये। यहाँ आचार्य के वियोग में शिष्यजन अपना शरीर त्यागते है, यह श्री रामानुज स्वामीजी के वैभव को प्रकाशित करता है।

हमने यहाँ पर श्रीबालधन्वी गुरु (इळैयविल्लि) के जीवन के कुछ सुन्दर बातें देखी। वह पूरी तरह भागवत निष्ठा में अटल थे ओर स्वयं श्री रामानुज स्वामीजी को प्रिय थे। हम उनके चरणारविन्द में यह प्रार्थना करते हैं कि हम में भी कुछ भागवत निष्ठा आ जाये।

श्रीबालधन्वी गुरु (इळैयविल्लि ) की तनियन:

श्री कौसिकान्वया महाभूथि पूर्णचन्ध्रम
श्री भाष्यकार जननी सहजा तनुजम
श्री शैलपूर्ण पद पंकज़ सक्त चित्तम
श्री बालधन्वी गुरुवर्यम अहं भजामी

अडियेन् केशव रामानुज दासन्

Source: https://guruparamparai.wordpress.com/2013/04/03/koil-komandur-ilayavilli-achan/

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About sarathyt

Disciple of SrImath paramahamsa ithyAdhi pattarpirAn vAnamAmalai jIyar (29th pattam of thOthAdhri mutt). Descendant of komANdUr iLaiyavilli AchchAn (bAladhanvi swamy, a cousin of SrI ramAnuja). Born in AzhwArthirungari, grew up in thiruvallikkENi (chennai), lived in SrIperumbUthUr, presently living in SrIrangam. Learned sampradhAyam principles from (varthamAna) vAdhi kEsari azhagiyamaNavALa sampathkumAra jIyar swamy, vELukkudi krishNan swamy, gOmatam sampathkumArAchArya swamy and many others. Full time sEvaka/servitor of SrIvaishNava sampradhAyam. Engaged in translating our AzhwArs/AchAryas works in Simple thamizh and English, and coordinating the translation effort in many other languages. Also engaged in teaching dhivyaprabandham, sthOthrams, bhagavath gIthA etc and giving lectures on various SrIvaishNava sampradhAyam related topics in thamizh and English regularly. Taking care of koyil.org portal, which is a humble offering to our pUrvAchAryas. koyil.org is part of SrI varavaramuni sambandhi Trust (varavaramuni.com) initiatives.

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