तिरुमलिसै अण्णावप्पंगार

श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद् वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः

thirumazhisaiazhwar

श्री भक्तिसार

तिरुनक्ष्त्र: ज्येष्ठ, धनिष्ठा

अवतार स्थल:  तिरुमलिसै

आचार्य: नरसिम्हाचार्य (उनके पिताश्री)

तिरुमलिसै (महिसार क्षेत्रं) में जन्मे, उनके पिता नरसिम्हाचार्य द्वारा उनका नाम वीरराघवन रखा गया। उनका जन्म श्री दाशरथि स्वामीजी के प्रसिद्ध वादुल वंश में हुआ था। उन्होंने भक्तिसारोदयं नामक अपने स्तोत्र ग्रंथ में स्वयं अपने पितामह श्रीरघुवाराचार्यजी के विषय में बताया है। उन्हें वादुल वीरराघवाचार्य नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म वर्ष 1766 ए.डी में हुआ था।

वे बहुत विद्वान् थे और 15 वर्ष की आयु तक उन्होंने स्वयं की यजुर्वेद शाकै के साथ तर्कं, व्याकरणं, मीमांसा, सांख्यं, पतंजलि योगं आदि की शिक्षा पूर्ण की और ज्योतिष, संगीत , भारत नाट्यम आदि में पारंगत हुए। 20 वर्ष की आयु तक, वे सभी शास्त्रों में पारंगत और अधिकृत हो गए थे। उन्होंने रहस्य ग्रंथ आदि की शिक्षा अपने पिताश्री से प्राप्त की और हमारे सत संप्रदाय के महत्वपूर्ण सिद्धातों की स्थापना के लिए व्याख्यान देना प्रारंभ किया। उन्होंने वादुल वरदाचार्य और श्रीरंगाचार्य (जिन्होंने विभिन्न दिव्यदेशों की यात्रा की और वहां चर्चा में बहुत से छद्म विद्वानों को पराजित किया) के सानिध्य में भी शिक्षा प्राप्त की।

वे 51 वर्षों के अल्प समय के लिए लीलाविभुती में रहे और फिर ईश्वर वर्ष, अश्विन मास, शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को परमपद के लिए प्रस्थान किया।

पिल्लै लोकाचार्य के श्रीवचन भूषण के श्री वरवरमुनि स्वामीजी के व्याख्यान ले लिए अरुमपदम (विस्तृत व्याख्यान) उनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक है। उनका अन्य ग्रंथ, भक्तिसारोदयं, तिरुमलिसै आलवार के जीवन का बहुत सुंदरता से वर्णन करता है।

रचनायें:

अपने अल्प जीवन में, उन्होंने बहुत से साहित्यिक रचनाओं का योगदान किया। उनकी रचानों की सूचि निम्न है:

  1. श्री भक्तिसारोदयं
  2. वेदवल्ली शतकम्
  3. हेमलताष्टकम्
  4. अभीष्ट दंडकम्
  5. सुक संदेशं
  6. कमला कल्याण नाटकं
  7. मलयजपरिणय नाटिका
  8. नृसिम्हाष्टकम्
  9. श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के श्रीवचन भूषण व्याख्यान के लिए अरुमपदम् विवरण
  10. तिरुच्चंत विरुत्त प्रतिपदम्
  11. श्रीरंगराज स्तव व्याख्यान
  12. महावीरचरित व्याख्या
  13. उत्तररामचरित व्याख्या
  14. सतश्लोकी व्याख्या
  15. रामानुजाष्टकम् व्याख्या
  16. नक्षत्रमालिका व्याख्या
  17. देवराजगुरू विरचित वरवरमुनिशतक व्याख्या
  18. दुशकरश्लोक टिपण्णी
  19. दिनचर्या
  20. शणमत दर्शिनी
  21. लक्ष्म्या: उपायत्व निरास:
  22. लक्ष्मीविभुत्व निरास:
  23. सूक्तिसाधुत्वमाला
  24. तत्वसुधा
  25. तत्वसार व्याख्या- रत्नसारिणी
  26. सच्चरित्र परित्राणं
  27. पलनदै विलक्कम
  28. त्रिमसतप्रश्नोत्तरं
  29. लक्ष्मीमंगलदीपिका
  30. रामानुज अतिमानुष वैभव स्तोत्रं
  31. अनुप्रवेश श्रुति विवरणं
  32. “सैलोग्निश्च” श्लोक व्याख्या
  33. महीसारविषय चूर्णिका
  34. ‘स्वान्ते मे मदनस्थितिम परिहार’ इत्यादि श्लोक व्याख्यान
  35. सच्चर्याक्ष्कम्
  36. प्राप्यप्रपंचन पञ्चविंशति:
  37. न्यायमंत्रम्
  38. तात्पर्य सच्च्रिकरम
  39. वचस्सुतामीमांसा
  40. वचस्सुतापूर्वपक्षोत्तारम
  41. ब्रह्मवतवतंगम
  42. लक्ष्मीस्तोत्रं
  43. वर्णापञ्चविंशति:

इस तरह हमने तिरुमलिसै अण्णावप्पंगार के गौरवशाली जीवन की कुछ झलक देखी। वे एक महान विद्वान् थे और उन्होंने हमारे सत संप्रदाय के हितार्थ बहुत से साहित्यिक रचनाओं का योगदान किया। हम सब उनके श्री चरण कमलो में प्रार्थना करते हैं कि हम दासों को भी भगवत विषय में उनके अंश मात्र ज्ञान की प्राप्ति हो।

तिरुमलिसै अण्णावप्पंगार की तनियन:

श्रीमद् वादुल नरसिम्ह गुरोस्थनुजम्,
श्रीमत् तदीय पदपंकज भृंगराजम् ।
श्रीरंगराज वरदार्य कृपात्त भाष्यं,
सेवे सदा रघुवरार्यं उदारचर्यं ।।

-अदियेन् भगवति रामानुजदासी

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