Monthly Archives: October 2015

पिल्लै लोकम् जीयर

श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद् वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः

pillailokam-jeeyarपिल्लै लोकम् जीयर, तिरुवल्लिक्केणी

तिरुनक्षत्र:: चैत्र, श्रवण नक्षत्र

अवतार स्थल: कांचीपुरम

आचार्य: शठकोपाचार्य

रचनाएँ: तनियन व्याख्यान, रामानुज दिव्य चरित, यतीन्द्र प्रवण प्रभावं, रामानुज नूट्र्रांताति व्याख्यान, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की प्रायः सभी सूक्तियों पर व्याख्यान, कुछ रहस्य ग्रंथों के लिए व्याख्यान, चेय्य तामरै तालिनै (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी का वालि तिरुनाम) के लिए व्याख्यान, श्रीवैष्णव समयाचार निष्कर्षम्

कांचीपुरम में जन्मे, वे परवस्तु पट्टरपिरान जीयर (जो श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के अष्ठ दिग्गजों में एक थे) के पड-पौत्र थे और उनका जन्म नाम वरदाचार्य था । वे पिल्लै लोकम जीयर और पिल्लै लोकाचार्य जीयर नाम से भी प्रसिद्ध थे।

उन्होंने तिरुक्कदलमल्लै (महाबलीपुरम-मामल्लपुरम) के स्थलशयन भगवान के मंदिर का जीर्णोद्धार किया और मंदिर में पूजा की उचित विधि स्थापित की। उनके योगदान के लिये राजा ने उनका सम्मान किया और आज भी मंदिर में उनके वंशजों को विशेष सम्मान प्रदान किया जाता है।

वे महान विद्वान् और एक महान इतिहासकार भी थे। उनके जीवन के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है। परंतु उनकी रचनाएँ हमारे संप्रदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कुछ शिलालेख पाए गए हैं, जिनमें दिव्यदेशों में उनके योगदान का उल्लेख मिलता है।

  • वर्ष 1614 ए.डी. से सम्बंधित एक ताम्बे का छापा, जो तिरुक्कदलमल्लै दिव्यदेश में प्राप्त हुआ, यह दर्शाता है कि जीयर अर्थात यतीन्द्र प्रवणं प्रभावं के रचयिता पिल्लै लोकम जीयर (जो यह दर्शाता है की उस समय तक वे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की जीवनी लिखने के कारण बहुत प्रसिद्ध हो गये थे)।
  • वर्ष 1614 ए.डी. का एक पत्थर का शिलालेख, जो श्रीरंगम के दूसरे प्राकारं में प्राप्त किया गया, से हमें यह जानकारी प्राप्त होती है कि पिल्लै लोकम जीयर के एक शिष्य ने श्रीरामानुज स्वामीजी की तिरुनक्षत्र दिवस पर क्षीरान का भोग लगाने के लिए 120 स्वर्ण सिक्कों का योगदान दिया था।

उन्होंने अधिकांश दिव्य प्रबन्धों के प्रारंभिक पद अर्थात तनियन पर व्याख्यान की रचना की। इन व्याख्यानों में उन्होंने उस विशिष्ट दिव्य प्रबंध के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाया है और उस दिव्य प्रबंध के रचयिता के ह्रदय/मनोभाव का चित्रण किया है।

ramanujar-sriperumbudhur

उन्होंने रामानुज दिव्य चरित्र, श्री रामानुज स्वामीजी के जीवन का बहुत सुंदर वर्णन की है। श्रीरामानुज स्वामीजी की विभिन्न यात्रियों, उनके जीवन और उनके अन्य शिष्यों के जीवन की घटनाओं का इस ग्रंथ में मधुरता से चित्रण किया गया है।

नम्पेरुमाल , श्री वरवरमुनि स्वामीजी को श्रीशैलेश तनियन प्रस्तुत करते हुए

नम्पेरुमाल , श्री वरवरमुनि स्वामीजी को श्रीशैलेश तनियन प्रस्तुत करते हुए

उनका यतीन्द्र प्रवण प्रभावं ग्रंथ पेरियावाच्चान पिल्लै, वडूक्कू तिरुविधि पिल्लै, पिल्लै लोकाचार्य, अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार्, तिरुवाय्मौली पिल्लै और मणवाल मामुनिगल/ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी और कई अन्य आचार्यों के वैभवशाली जीवन परिचय का चित्रण करता है। इस ग्रंथ में श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के जीवन का विस्तार से वर्णन किया गया है और उनके बहुमूल्य निर्देशों को अत्यंत सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है।

रामानुजार्य दिव्य चरितं और यतीन्द्र प्रवण प्रभावं दोनों ही बहुत से तमिल पसूरों से युक्त हैं जो उनके तमिल भाषा के गहरे ज्ञान को दर्शाता है।

उन्होंने कुछ रहस्य ग्रंथों के व्याख्यान की भी रचना की है।

उन्होंने विलान्चोलै पिल्लै द्वारा रचित सप्त गाथा के लिए भी बहुत सुंदर व्याख्यान की रचना की है। सप्त गाथा, पिल्लै लोकाचार्य के श्रीवचनभूषण दिव्य शास्त्र के सार – आचार्य निष्ठा के विषय में वर्णन करता है।

उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की श्री सूक्तियां, उपदेश रत्न माला, तिरुवाय्मौली नुरन्तादी और आरती प्रबंध पर वृहद व्याख्यानों की रचना की है।

उन्होंने श्रीवैष्णव समयाचार निष्कर्षम् नामक एक अत्यंत सुंदर काव्य ग्रंथ की रचना की, जो रामानुज दर्शन (हमारे सत-संप्रदाय) के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की अधिकृत रूप से स्थापना करती है। इस ग्रंथ में बहुत से प्रमाणों का उल्लेख किया गया है जो पिल्लै लोकम जीयर के शास्त्रों के गहरे ज्ञान को दर्शाता है।

इस तरह हमने पिल्लै लोकम जीयर के गौरवशाली जीवन की कुछ झलक देखी। उन्होंने हमारे पूर्वाचार्यों की श्रीसूक्तियों पर विस्तृत व्याख्यान की रचना करके अथवा श्रीरामानुज स्वामीजी और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के महान जीवन परिचय को लिपिबद्ध करके हमारे श्रीवैष्णव संप्रदाय पर बहुत उपकार किया है। हम सब उनके श्री चरण कमलो में प्रार्थना करते हैं कि हम दासों को भी श्री रामानुज स्वामीजी और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के प्रति उनके समान ही अनुराग विकसित हो।

पिल्लै लोकम जीयर की तनियन (यतीन्द्र प्रवणं प्रभाव से ली गयी):

श्रीसठारी गुरोर्दिव्य श्रीपादाब्ज मधुव्रतम।
श्रीमतयतीन्द्रप्रवणं श्री लोकार्य मुनिं भजे।।

-अदियेन् भगवति रामानुजदासी

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श्री भूतपुरि आदि यतिराज जीयर

श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद् वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः

तिरुनक्षत्र: अश्विन मास पुष्य नक्षत्र

अवतार स्थल:  ज्ञात नहीं

आचार्य: श्रीवरवरमुनि स्वामीजी

स्थान जहाँ उन्होंने परमपद प्राप्त किया: श्रीपेरुम्बुदुर

यतिराज जीयर मठ, श्रीपेरुम्बुदुर (श्रीरामानुज स्वामीजी का अवतार स्थल) आदि (प्रथम) यतिराज जीयर ने स्थापित किया था।

श्रीपेरुम्बुदुर यतिराज जीयर मठ, श्रीपेरुम्बुदुर

श्रीपेरुम्बुदुर यतिराज जीयर मठ, श्रीपेरुम्बुदुर

यह यतिराज जीयर मठ बहुत अनोखा है, क्यूंकि यह उन कुछ मठों में से एक है जो आलवार / आचार्य अवतार स्थल पर मंदिर के कैंकर्य के लिए और मंदिर में होने वाले उन कैंकर्य की देखभाल करने के लिए स्थापित किया गया है। भगवान और श्रीरामानुज स्वामीजी वर्षभर इस मठ में पधारते हैं।

यतिराज जीयर – श्रीपेरुम्बुदुर यतिराज जीयर मठ

यतिराज जीयर – श्रीपेरुम्बुदुर यतिराज जीयर मठ

उनकी तनियन से हम समझ सकते हैं कि उनका श्रीवरवरमुनि स्वामीजी और अन्य आचार्यों जैसे वानमामलै जीयर, कोयिल कन्दाडै अण्णन् और दोडाचार्य के साथ एक अद्भुत संबंध था। यतिराज जीयर ने इन महान आचार्यों के चरण कमलों में शिक्षा प्राप्त की।

उनके वालि तिरुनाम से हम समझ सकते हैं कि उनकी श्रीरामानुज स्वामीजी के चरण कमल में बहुत प्रीति थी। उनका वालि तिरुनाम श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वालि तिरुनाम से बहुत मिलता-जुलता है।

यतीन्द्र प्रवण प्रभावं में, यह कहा गया है कि परमस्वामी (तिरुमालिरुन्चोलै कल्ललगर) के निर्देशानुसार, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने यतिराज जीयर नामक अपने एक गोपनीय कैंकर्यपारर को तिरुमालिरुन्चोलै मंदिर के संशोधन और व्यवस्था के लिए भेजा। कुछ लोग, इन यतिराज जीयर को श्रीपेरुम्बुदुर आदि यतिराज जीयर मानते हैं, वहीं कुछ अन्य बताते हैं कि वे कोई और जीयर हैं जो बाद में तिरुमालिरुन्चोलै जीयर मठ के प्रथम जीयर हुए। इस बारे में अधिक जानने के लिए, विज्ञ विद्वानों से अनुसंधान कर सकते हैं।

इस तरह हमने श्रीपेरुम्बुदुर आदि यतिराज जीयर के गौरवशाली जीवन की कुछ झलक देखी। हम सब उनके श्री चरण कमलो में प्रार्थना करते हैं कि हम दासों को भी भगवत/भागवत/आचार्य कैंकर्य की प्राप्ति हो।

श्रीपेरुम्बुदुर आदि यतिराज जीयर की तनियन:

श्रीमत् रामानुजांघ्री प्रवण वरमुने: पादुकं जातब्रुंगम,
श्रीमत् वानान्द्री रामानुज गणगुरु सतवैभव स्तोत्र दीक्षम् ।
वादूल श्रीनिवासार्य चरणशरणम् तत् कृपा लब्ध भाष्यं,
वन्दे प्राज्ञं यतिन्द्रम् वरवरडगुरो: प्राप्त भक्तामृतार्तम् ।।

-अदियेन् भगवति रामानुजदासी

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