तनियन् (ध्यान् श्लोक्)

श्रीः

श्रीमते रामानुजाय नमः

श्रीमद् वरवरमुनये नमः

श्री वानाचलमहामुनये नमः

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ई पुस्तक के रूप मे हम सभी वैष्णवों के लिये ओराण्वळिगुरुपरम्परा के अन्तर्गत सभी आचार्यों के प्रातः अनुस्मरणीय श्लोक इस लिंक मे प्रस्तुत है ।

तनियन एक ऐसा सदा अनुस्मरणीय वंदना के योग्य श्लोक है जो आचार्य को गौरान्वित करता है | यह शिष्य द्वारा विरचित या जिसकी रचना एक शिष्य करता है और आचार्य का आभार मानकर, आचार्य के प्रती सद्भावना से और कृतज्ञ होकर यह श्लोक आचार्य को समर्पित और प्रस्तुत करता है |

कूरत्ताऴ्वान (कूरेश स्वामि) हमारे दिव्य सत्-साम्प्रदाय के गुरु-परम्परा का वर्णन एक सुन्दर श्लोक रूप मे प्रस्तुत करते है जिसे श्री वैष्णव हर रोज़ नित्यानुसंधान मे उसका पाठ करते है ।

लक्ष्मीनाथ समारंभाम् नाथ यामुन मध्यमाम् । अस्मदाचार्य पर्यन्ताम् वन्दे गुरु परम्पराम् ॥

श्लोक का भावार्थ (अनुवाद) – मै नमन करता हूँ कि ऐसे यशस्वी आनन्ददायक गुरुपरम्परा जो भगवान श्रीमन्नारायण से शुरू होति हैं, श्रीनाथमुनि और यामुनाचार्य जिसके बींच मै हैं, और मेरे आचार्य से समाप्त होति हैं ।

अस्मदाचार्य का अर्थ –
1) श्री कूरेश स्वामि के आचार्य यानि श्रीरामानुजाचार्य
2) हमारे लिये अपने आचार्य जिन्होने हमे पंञ्चसंस्कार (तप्त मुद्र – शंख और चक्र) दिये, वह ।

हम सभी वैष्णवों के लिये हम ओराण्वळिगुरुपरम्परा से शुरुवात कर अनन्तर अन्य आचार्यों के ध्यान श्लोक प्रस्तुत करेंगे । अब हमारी अखन्डित वंशावली आचार्यों (ज्योंकि श्रीमन्नारायण से शुरू होति है और मनवाळ मामुनि से खत्म होति है) के ध्यान श्लोक प्रस्तुत है |

श्री स्थनाभरणम् तेजः श्रीरंगेशयमाश्रये । चिन्तामणि मिवोत्वान्तम् उत्संगे अनन्तभोगिनः ॥

मै ऐसे श्रीरंगनाथ भगवान का आश्रय लेता हूँ जो श्री महालक्ष्मी के स्थनों पर सुन्दर और आकर्षक हार की तरह विराजमान और शुशोभित है, जो स्वयम सूर्य की तरह दीप्तिमान है, जो श्रीरंग मे विराजमान है, और जो आदि शेष की गोद मे विरजमान एक प्रज्ज्वलित मुकुट की तरह है ।

नमः श्रीरंग नायक्यै यत् भ्रोविभ्रम भेततः । ईशेशितव्य वैशम्य निम्नोन्नतमिदम् जगत् ॥

मै नमन करता हूँ ऐसे श्री रंगनाच्चियार (श्री महालक्ष्मी) का, जो अपने भौं (भृकुटीयों) के चलन (गतिविधियों) [यह उनकी इच्छा और प्रतिक्रिया को दर्शाति है] से सारे जीवात्माओं का भाग्य निर्धारित करती है (कौन धनी, कौन गरीब, कौन ज्ञानि, कौन अज्ञानि इत्यादि) ।

श्री रंगचँद्रमसम् इन्द्रियाविहर्तुम् विन्यस्यविस्वचिद चिन्नयनाधिकारम् ।
यो निर्वहत्य निसमन्गुळि मुद्रयैव सेनान्यमन्य विमुकास्तमसि श्रियाम ॥

हम ऐसे श्री विश्वक्सेन के चरण कमलों का आश्रय लेते है, जो श्रीरंग के बहुमूल्य और सुन्दर चाँद (श्रीरंगनाथ भगवान) को अपने सत्पत्नी (श्रीरंगनाच्चियार) के पास भेजते है ताकि भगवान अपनी दिव्य लीलाओं का आनन्द ले और तत्पश्चात भगवान से प्राप्त दिव्य शक्तियों से पूरे विश्व यानि चेतनों और अचेतनों का नियंत्रण करते है ।

माता पिता युवतयस्तनया विभूतिः सर्वम् यदेव नियमेन मदन्वयानाम् ।
आद्यस्य नः कुलपतेर्वकुळाभिरामम् श्रिमत्तदन्घ्रि युगळम् प्रणमामि मूर्ध्ना ॥

मै अपने शिरस से श्री नम्माऴ्वार को अभिनंदन (प्रणाम) करता हूँ, जो श्रीवैष्णवों (प्रपन्नजन) के कुल के अधिपति नेता है, जो मघिऴम () फूलों से सुसज्जित है, जिनके दिव्यचरण श्रीवैष्णवश्री (धन-संपत्ति) से भरपूर है और जो सब श्रीवैष्णवों के माता, पिता, पत्नी, बच्चा, दिव्य धन इत्यादि और सब कुछ है ।

नमः अचिन्त्याद्भुताक्लिष्ट ज्ञानवैराग्यरासये | नाथायनाथमुनये अगाधभगवद्भक्तिसिन्धवे ।

मै प्रणाम करता हूँ ऐसे श्री नाथमुनि का, जो भगवद्-विषय के दिव्य ज्ञान और भौतिक जगत से वैराग्य से भरपूर है जिसकी गणना नही कर सकते है यानि असाधारण है, जो भगवान का सदा ध्यान करते है, और भगवद्-भक्ति के विशाल सागर है ।

नमः पंकजनेत्राय नाथः श्रीपादपंकजे | न्यस्तसर्वभराय अस्मत्कुलनाथायधीमते

मै ऐसे श्री पुण्डरीकाक्ष स्वामि का अभिवंदन करता हूँ, जिन्होने नाथमुनि के दिव्यचरणों मे अपने आप को समर्पित कर दिया, जो हमारे प्रपन्न कुल के नेता है और जो ज्ञानवान है ।

अयत्नथो यामुनमात्म दासम् अलर्क्क पत्रार्प्पण निष्क्रियेण
यः क्रीत्वानास्तित यौवराज्यम् नमामितम् राममेय सत्वम् ।

मै ऐसे श्री मणक्काल नम्बि जिन्हे श्रीराममिश्र के नाम से सुप्रसिद्ध है उनका अभिवंदन करत हूँ, जिन्होने अपने ज्ञान का समुचित प्रयोग कर केवल तूतुवळै हरि राजकुमार श्री आळवन्दार (यामनुमुनि) को परिवर्तित किया ।

यत् पदाम्भोरुहध्यान विध्वस्ताशेष कल्मषः । वस्तुतामुपयातोहम् यामुनेयम् नमामितम् ॥

मै ऐसे श्री यामुन मुनि का अभिवंदन करता हूँ, जिन्के ध्यान करने और असीम कृपा से मेरे सारे दोषों का नाश हुआ, और मै एक पहचानने योग्य वस्तु हुआ (पहले मे असत था लेकिन अब जान गया की मै असत नही सत हूँ यानि मै केवल देह नही बलकी देह से परे आत्मा हूँ) ।

कमलापति कल्याण गुणामृत निशेवया । पूर्णकामायसततम् पूर्णाय महते नमः ॥

मै ऐसे श्री पेरिय नम्बि (महापूर्ण) का अभिवंदन करता हूँ, जो प्रतिदिन श्रीमन्नारायण के दिव्य-शुभ गुणों के अनुभूति से आनन्द का अनुभव लेते हुए आत्मसंतुष्ट है ।

योनित्यमच्युतपदाम्बुजयुग्मरुक्मव्यामोहतस्तदितराणि तृणाय मेने ।
अस्मद्गुरोर्भगवतोस्य दयैक सिन्धोः रामानुजस्य चरणौ शरणम् प्रपद्ये ॥

मै अपने आचार्य, श्रीपाद रामानुजाचार्य का अभिवंदन करता हूँ, जो श्री अच्युत भगवान के चरणकमलों के प्रती अत्यन्त लागव के कारण अन्य सभी वस्तुवों को तिनके के समान तुछ मानते है, और जो ज्ञान, वैराग्य, भक्ति इत्यादि गुणों से संपन्न है, और जो कृपा के सागर है ।

रामानुज पदच्छाया गोविन्दाह्वानपायिनी । तदायत्तस्वरूपा सा जीयान्मद्विश्रमस्थली ॥

मै ऐसे गौरवनीय यशस्वी गोविन्दाचार्य के चरणकमलों का आश्रय लेता हूँ, जिन्होने श्री रामानुजाचार्य के चरणकमलों का आश्रय लेकर निज-स्वरूप ज्ञान प्राप्त किया और जो श्री रामानुजाचार्य से एक छाया की भाँंति अभिन्न है । ऐसे गोविन्दाचार्य (एम्बार) सदा विजयी रहे ।

श्री पराशर भट्टार्य श्रीरंगेश पुरोहितः । श्रीवत्सांग सुतस्श्रीमान् श्रेयसेमेस्तु भूयसे ॥

मै ऐसे श्री पराशरभट्टर के चरणकमलों का आश्रय लेता हूँ, जो श्रीरंगनाथ के प्रिय पुरोहित है, श्रीवत्स (आळ्वान) के पुत्र है और जो सेवाभाव (कैंकर्यश्री) से परीपूर्ण है और हम सभी को सुभ और मंगल प्रदान करे ।

नमो वेदान्त वेद्याय जगंमंगळ हेतवे । यस्य वागामृतासार भूरितम् भुवनत्रयम् ॥

मै नमन करता हूँ, ऐसे श्री वेदान्ति नन्जीयर जिनके मधुर शब्दों तीनों संसार मे भर गए और निश्चित से तीनों लोकों मे शुभ लाते है । 

वेदान्त वेद्यामृत वारिरासेर्वेदार्थसारामृतपूरमग्रयम् ।
आदायवर्शन्तमहम् प्रपद्ये कारुण्यपूर्णम्कलिवैरिदासम् ॥

मै नमन करता हुए ऐसे श्री नम्पिळ्ळै (कलिवैरिदास) के चरण कमलों का आश्रय लेता हूँ, जिन्होने नम्पिळ्ळै से दिव्य गौरवनीय सुधा जैसे वेदों का सारा-तथ्य को सींचा, (जो) सुधा जैसे दिव्य सिद्धान्तों के प्रत्यक्ष सागर है, (जो) कृपा और कारुण्य इत्यादि गुणों से परिपूर्ण है ।

श्री कृष्ण पाद पादाब्जे नमामि सिरसा सदा । यत्प्रसाद प्रभावेन सर्व सिद्धिरभून्मम ॥

मै सदा ऐसे श्रीकृष्ण स्वामी जी के चरणकमलों मे झुककर अभिनन्दन और नमन करता हूँ, केवल जिनकी कृपा कटाक्ष से मुझमे ज्ञान, भक्ति, वैराग्य इत्यादि गुण आवाप्त हुए है ।

लोकाचार्याय गुरवे कृष्णपादस्य सूनवे । संसारभोगिसन्दष्ट जीवजीवातवे नमः ॥

मै ऐसे श्री कृष्णस्वामीजी के पुत्र पिळ्ळैलोकाचार्य का सिरसा अभिवन्दन और नमन करता हूँ, जिनके योग्य आचार्य थे, (जो) संसार नामक विष रूपी साँप से पीडित संसारियों के लिये एक जड़ी-बूटी के समान है ।

नम श्रीशैलनाथाय कुन्ती नगर जन्मने । प्रसादलब्ध परम प्राप्य कैन्कर्यशालिने ॥

मेरे अभिनन्दन और नमन केवल श्रीशैलनाथस्वमीजी को ही अर्पण है, (जिन्होने) कुन्तीनगर मे जन्म लिया, और अपने आचार्य के अनुग्रह से सर्वश्रेष्ठ कैंकर्य प्राप्त किया ।

श्रीशैलेशदयापात्रम् दीभक्त्यादिगुणार्णवम् । यतीन्द्रप्रवणम्वन्दे रम्यजामातरम् मुनिम् ॥

मै ऐसे यशस्वी और गौरवनीय वरवरमुनि (श्री मणवाळमामुनि) की पूजना करता हूँ, (जो) श्रीशैलस्वामीजी के दया के पात्र थे, (जो) दिव्य गुणों जैसे ज्ञान, भक्ति इत्यादिके सागर है और जिन्हे श्री रामानुजाचार्य के प्रती अत्यन्त लगाव था ।

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अब हम आळ्वारों और अनेक श्री वैष्णवाचार्यों के तनियन् प्रस्तुत करेंगे ।

आळ्वारों का क्रम कुछ इस प्रकार है –

कांञ्चयाम् सरसि हेमाब्जे जातम् कासारा योगिनम् । कलये यः श्रियः पत्ये रविम् दीपम् अकल्पयत् ।।

मै ऐसे श्री पोइगैयाळ्वार का नमन करता हूँ, (जो) तिरुवेक्का (कांञ्चीपुरम) मे स्थित तलाब मे सुवर्ण कमल के फूल मे प्रकट हुए, जिन्होने भगवान श्रीमन्नारायण के दर्शन हेतु प्रकाशमान सूर्य की किरणों के माध्यम से दीपक जलाये ।

मल्लापुर वराधीसम् माधवी कुसुमोद्भवम् । भूतंनमामि यो विष्णोर्ज्ञानदीपमकल्पयत् ॥

मै ऐसे श्री भूतदाळ्वार का सिरसाभिवन्दन करता हूँ, (जो) मामल्लपुरम् (तिरुक्कडल्मल्लै) के नेता थे, (जो) माधवि फूल मे से प्रकट हुए और भगवान श्रीमन्नारायण के दर्शन हेतु ज्ञान का दीपक जलाये ।

दृष्वा हृष्टम् तदा विष्णुम् रमया मयिलाधिपम् । कूपे रक्तोत्पले जातम् महताह्वयम् आश्रये ॥

मै ऐसे पेयाळ्वार के चरणकमलों का आश्रय लेता हूँ, (जो) मैलापुर के नेता थे, (जो) लाल कुमुदिनी फूल से प्रकट हुए, और भगवान श्रीमन्नारायण और श्रीमहालक्ष्मि के दर्शन पाकर दिव्य परमानन्द की अनुभूती हुई ।

  • तिरुमळिसै आळ्वार् (पुष्य मास, माघ नक्षत्र)

शक्ति पंचमय विग्रहात्मनेसूक्तिकारजत चित्तहारिणे ।
मुक्तिदायक मुरारिपादयोर्भक्तिसार मुनये नमोनमः ॥

मै नमन करता हूँ, ऐसे श्री तिरुमळिशैयाळ्वार का, (जो) श्री मुकुन्द भगवान के श्री चरणकमलों के प्रती भक्ती के सारांश साक्षात्कार स्वरूप है,(जो) हम सभी को मोक्ष प्रदान करने मे सक्षम है, (जो) अपने हृदय मे श्री अर्चाविग्रह स्वरूपी भगवान को बिराजे है और (जो) अपने गले मे सूक्ति हार सदैव पहने हुए है ।

अनुवादक टिप्पणि — भगवान श्रीमन्नारायान इस भौतिक जगत के तत्वों से परे है यानि वे केवल शुद्ध और विशुद्ध तत्व से प्रतिपादित और ज्ञेय है । हमारे देह पंञ्च भूतों (तत्वों) से बना है – भूमि, जल, वायु, अग्नि, आकाश (हिमद्रव) । लेकिन भगवान का स्वरूप पंञ्च उपनिषद यानि विश्व, निवृत्त, सर्व, परमेष्ठि, पुमान् इत्यादि तत्वों से बना है ।
तिरुमळिशैयाळ्वार सूक्तिहार राजा को परास्त किये । हर्षित राजा से उन्हें एक हार तौफ़े के रूप मे प्रस्तुत किया और उसी हार को अपने आळ्वार धारण किये हुए है ।

अविदितविषयान्तरश्शटारेरुपनिषदामुपगानमात्रभोगः ।
अपि च गुणवशात्तदेकशेषि मधुरकविर्हृदयेममाविरस्तु ॥

ऐसे मधुरकवि आळ्वार सदैव मेरे हृदय मे द्रड़ता से बिराजते हुए प्रतिष्ठित हो, (जिनको) अपने आचार्य नम्माळ्वार के अलावा अन्यों का ज्ञान नही है, (जो) नम्माळ्वार के पासुरों का मनन-चिंतन-गान ही हर्षदायक सुखद श्रेय कार्य समझे, और जिन्होने केवल नम्माळ्वार को स्वाभाविक रूप से अपना आचार्य माना ।

माता पिता युवतयस्तनया विभूतिः सर्वम् यदेव नियमेन मदन्वयानाम् ।
आद्यस्य नः कुलपतेर्वकुळाभिरामम् श्रिमत्तदन्घ्रि युगळम् प्रणमामि मूर्ध्ना ॥

मै अपने शिरस से श्री नम्माऴ्वार का अभिनंदन (प्रणाम) करता हूँ, जो श्रीवैष्णवों (प्रपन्नजन) के कुल के अधिपति नेता है, जो मघिऴम () फूलों से सुसज्जित है, जिनके दिव्यचरण श्रीवैष्णवश्री (धन-संपत्ति) से भरपूर है और जो मेरे भविष्य सन्तान के माता, पिता, पत्नी, बच्चा, दिव्य धन इत्यादि और सबी कुछ है ।

  • कुलशेखराळ्वार् (माघ मास, पुनर्वसु नक्षत्र)

घुष्यते यस्य नगरे रंगयात्रा दिने दिने । तमहम्सिरसा वन्दे राजानं कुलशेखरम् ॥

मै ऐसे कुळशेखराळ्वार का सिरसाभिवन्दन करता हूँ, जिनके राज्य मे केवल श्री रंग की यात्रा का अभिवादन, जयजयकार सुनाई देता है ।

  • पेरियाळ्वार् (ज्येष्ठ मास, स्वाति नक्षत्र)

गुरुमुखमनधीत्य प्राहवेदानशेषान्नरपति परिक्लुप्तम्शुल्कमादातुकामः ।
स्वसुरममरवन्द्यम् रंगनाथस्य साक्षात् द्विजकुलतिलकम्विष्णुचित्तम् नमामि ॥

मै ऐसे पेरियाळ्वार की पूजा करता हूँ, जिन्होने बिना आचार्य के माध्यम से केवल भगवान की असीम कृपा से वेदों का सार सुन्दर प्रबंध मे किये ताकि वे पान्डिय राजा के सभा मे विद्वानों के लिये प्रस्तुत एक सोने से भरे हुए थैले को जीत सके, (जो) ब्राह्मणों के नेता थे और अन्ततः श्रीरंगनाथ पेरुमाळ के ससुर हुए ।

अनुवाद टिप्पणि – श्री पेरियाळ्वार आण्डाळ नाच्चियार के पिता थे । भगवदाज्ञा से उन्होने अपनी बेटी समान ( बेटी ही ) को सक्षात भगवान को धर्मपत्नी के रूप मे दे दिया ।

  • आण्डाळ् (आषाड मास, पूर्व फलगुनि नक्षत्र)

नीळा तुंगस्तनगिरितटीसुप्तमुद्बोध्य कृष्णम् पारार्थ्यम् स्वम् श्रुतिशतशिरस्सिद्धम् अध्यापयन्ती ।
स्वोछिष्टायाम् स्रजिनिगळितम् या बलात्कृत्य भुंक्ते गोदा तस्यै नमैदमिदम् भूय एवास्तु भूयः ॥

मै पुनः पुनः श्री गोदादेवी को अपना दण्डवत प्रणाम समर्पण करता हूँ, जिन्होने श्री नीळादेवी के स्थनों पर सुप्त श्री कृष्ण भगवान को जगाया, जिन्होने पारतन्त्रियम् (सबसे महत्त्वपूर्ण शिष्टाचार सिद्धान्त) विषय का उद्घोषण किया (मायने हम सभी भगवान के पराधीन है और यही हमारा स्वस्वरूप है, और जिन्होने ऐसे अर्चारूपी श्रीरंगनाथ भगवान का रसास्वादन किया जो उनके (नाच्चियार द्वारा) पहने हुए फूलों की माला को पहनते आये है ।

  • तोन्डरडिप्पोडि आळ्वार् (मार्गशीष मास, ज्येष्ठ नक्षत्र)

तमेव मत्वापरवासुदेवम् रंगेशयम् राजवदर्हणीयम् ।
प्राबोधकीम् योकृतसूक्तिमालाम् भक्तान्घ्रिरेणुम् भगवन्तमीडे ॥

मै ऐसे यशस्वी तोण्डरडिप्पोडि आळ्वार को गौरान्वित करता हूँ, जिन्होने अर्चारूपी श्रीरंगनाथ भगवान को साक्षात परवासुदेव और एक साम्राट समझकर, उनके लाड़ प्यार मे तिरुप्पळ्ळियेळुच्चि नामक दिव्यप्रबंध की रचना किये ।

  • तिरुप्पाणाळ्वार् (कार्तीक मास, रोहिणि नक्षत्र)

आपादचूडमनुभूय हरिम् शयानम् मध्येकवेरदुहितुर्मुदितान्तरात्मा ।
अद्रष्टृताम् नयनयोर्विषयान्तराणाम् यो निश्चिकाय मनवै मुनिवाहनम्तम् ॥

मै ऐसे गौरवनीय तिरुप्पाणाळ्वार का ध्यान करता हूँ, जिनका नाम मुनिवाहनर से सुप्रसिद्ध है, जिन्होने श्रीरंग (जो कावेरी नदियों – “कावेरी और कोळ्ळिडम्” के बींच मे स्थित है) मे आराम करने वाले श्रीरंगनाथ भगवान के अर्चारूप के महानानन्द का रसास्वादन किया, और जिन्होने यह घोषणा की उनके नेत्र केवल श्रीरंगनाथ के दिव्य अर्चारूप को ही देखने योग्य है ।

  • तिरुमन्गै आळ्वार् (कार्तीक मास, कार्तीक नक्षत्र)

कलयामिकलिध्वम्सम् कविम्लोकदिवाकारम् यस्य गोबिः प्रकाशाभिराविद्यम् निहतम्तमः ॥

मै ऐसे तिरुमंगै आळ्वार क मनन चिन्तन करता हूँ, कलिकन्री जिनका नाम है, (जो) कवियों मे समूह मे एक सूर्य की भांति है, और जिनके प्रकाशमान और दीप्तिमान शब्दों के माध्यम से बुद्धि की अज्ञानता छितरता है ।

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अब हम और कई सारे आचार्यों के तनियन् प्रस्तुत करेंगे जो ओरान्वाळि गुरुपरम्परा के अन्तर्गत नही आते पर अपने सद्विचारों और व्यवहार से जाने गये है (ऐसे आचार्यों का  निम्लिखित् कर्म कुछ इस प्रकार है)

नाथमौनि पदासक्तम् ज्ञानयोगादिसम्पदम् ।
कुरुहातिप योघीन्द्रम् नमामिसिरसासदा ॥

मै सदैव श्री कुरुगैकावलप्पन जी के चरणकमलों का नमन करता हूँ, (जिन्हें) श्रीनाथमुनि के चरणकमलों के प्रती अत्यन्त रुची थी, (जो) ज्ञान और भक्ति योग के महानिधी थे और (जो) योगियों मे सर्वश्रेष्ठ है ।

  • तिरुवरंगप्पेरुमाळ् अरयर् (वैशाख मास, ज्येष्ठ नक्षत्र)

श्रीराममिश्र पदपंकज संचरीकम् श्रीयामुनार्यवरपुत्रमहंगुणाब्यम् |
स्रीरन्गराज करुणा परिणाम दत्तम् श्रीभाश्यकार शरणम् वररन्गमीडे ||

मै ऐसे श्री तिरुवरंगप्पेरुमाळ (श्रीराममिश्र) को गौरान्वित करता हूँ, (जो) एक भौरें की तरह श्री मणक्काल नम्बि के चरणकमलों के इर्द-गिर्द मण्ड्राते थे, (जो) श्री यामुनाचार्य के दिव्य सुपुत्र (मानस पुत्र) थे, (जो) दिव्य गुणों से परिपूर्ण है, (जो) श्रीरंगनाथ पेरुमाळ के दिव्यानुग्रह से इस जगत मे प्रकट हुए और जिनके शिष्य श्री भाष्यकार (श्री रामानुजाचार्य) थे ।

  • तिरुक्कोष्टियूर् नम्बि (वैशाख मास, रोहिणि नक्षत्र)

श्रीवल्लभ पदाम्भोज दीभक्त्यमृतसागरम् ।
श्रीमद्गोष्टीपुरीपूर्णम् देशिकेन्द्र भजामहे ॥

हम सभी ऐसे तिरुक्कोष्टियूर नम्बि के चरणकमलों का आश्रय लेते है, (जो) दिव्यज्ञान और भगवान श्रिय पति श्रीमन्नारायण के चरणकमल के प्रती भक्ति के अमृत रूपी सागर है, और (जो) आचार्यों मे सर्वश्रेष्ठ माने जाते थे ।

  • पेरिय तिरुमलै नम्बि (वैशाख मास, स्वाति नक्षत्र)

श्रीमल्लक्ष्मण योगीन्द्र श्रीरामायण देशिकम् ।
श्रीशैलपूर्णम् वृशभ स्वाति संजातमाश्रये ॥

मै बार-बार श्री शैल्पूर्ण स्वामी जी का सिरसाभिवन्दन करता हूँ, (जो) इस जगत के सृष्टि कर्ता ब्रह्मा जी के दादा जी है, (जो) श्री रामानुजाचार्य के महत्वपूर्ण और अत्युत्तम आचार्य हुए और उन्हें वाल्मीकिरामायण के दिव्य गोपनीय अर्थों का विश्लेषण समझाये ।

अनुवाद टिप्पणि : स्वयम भगवान श्री वेंकटेश्वर स्वामी इन्हें अपने पिता समान समझकर उनका आदर करते थे । इसी कारण वह उन्हें पिताजी से संबोधित करते थे । इस प्रकार अगर ये भगवान के पिता सम्मान हुए तो निश्चित से ब्रम्हाजी के लिये ये दादा समान हुए क्योंकि भगवान ब्रम्हाजि के पिता है ।

  • तिरुमालै आण्डान् (माघ मास, माघ नक्षत्र)

रामानुज मुनींद्राय द्रामिडी सम्हितार्थतदम् ।
मालाधर गुरुम् वन्दे वावधूकम् विपस्चितम् ॥

मै ऐसे आचार्य तिरुमालैयाण्डान की पूजा करता हूँ, जिन्होने तिरुवाय्मोळि के दिव्यार्थों को अपनी निपुणता से श्री रामानुजाचार्य (द्राविदवेद से जिसका अभिवादन करते थे) को समझाये , (जो) सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमान है ।

देवराजदयापात्रम् श्री कांचि पूर्णमोत्तमम् ।
रामानुज मुनेर्मान्यम् वन्देहम् सज्जनाश्रयम् ॥

मै श्री तिरुक्कच्चिनम्बि की पूजा करता हूँ, (जो) श्री वरदराज भगवान के दया के पात्र थे, (जो) श्रीवैष्णवों मे सर्वश्रेष्ठ है, जिनका सम्मान स्वयम श्रीरामानुजाचार्य स्वामीजी किया करते थे, और (जो) सदैव श्रीवैष्णवों के समूह से घिरे हुए रहते थे ।

यामुनाचार्य सत्शिष्यम् रंगस्थलनिवासिनम् ।
ज्ञानभक्त्यादिजलधिम् मारनेरिगुरुम् भजे ॥

मै ऐसे श्री मारनेरिनम्बि की पूजा करता हूँ, (जो) श्री यामुनाचार्य के प्रिय शिष्य थे, (जो) श्रीरंग के पेरियकोयिल मे निवास करते थे, (जो) ज्ञान भक्ति इत्यादि गुण रूपी सागर थे ।

  • कूरत्ताळ्वान् (पुष्य मास, हस्ता नक्षत्र)

श्रीवत्स चिन्नमिश्रेभ्यो नमौक्तिमदीमहे ।
यदुक्तयस्त्रयी कण्ठे यान्ति मंगळसूत्रताम् ॥

हम सभी श्री कूरेशस्वामीजी (श्रीवत्सांङ्गमिश्र) का नमन करते है, जिनके स्तोत्र वेदों के मंगलसूत्र जैसे प्रतीत होते है माने जो निश्चित रूप मे श्रीमन्नारायण के परत्व को बतलाते है ।

  • मुदलियान्डान् (चैत्र मास, पुनर्वसु नक्षत्र)

पादुके यतिराजस्य कथयन्ति यदाक्यया ।
तस्य दासरथेः पादौ सिरसा धारयाम्यहम् ॥

मै ऐसे श्री मुदलियाण्डान स्वामी जी के चरणकमलों से अपने सिर को सुशोभित करता हूँ, जिनका नाम दाशरथी है, और जिनके नाम पर आधारित ही श्री यतिराज स्वामी जी के पादुक जाने गए ।

  • अरुळळ पेर्माळेम्पेरुमानार् (कार्तीक मास, भरणि नक्षत्र)

रामानुजार्य सच्शिष्यम् वेदसास्त्रार्थ सम्पदम् ।
चतुर्थाश्रम संपन्नम् देवराज मुनिम् भजे ॥

मै ऐसे देवराज मुनि ( अरुळळपेरुमाळ एम्पेरुमानार ) का आश्रय लेता हूँ, (जो) संयास आश्रम मे प्रतिष्ठ है, और जिन्हे वेदों के गोपनीय और गहरे अर्थों से प्राप्त दिव्य संपत्ति से संपन्न है ।

  • कोइल् कोमाण्डूर् इळयविल्लि आचान् (चैत्र मास, आश्लेषा नक्षत्र)

श्री कौसिकान्वय महाम्भुति पूर्णचन्द्रम्   श्री भाश्यकार जननी सहजा तनुजम् ।
श्रीशैलपूर्ण पदपंकज सक्त चित्तम्   श्रीबालधन्वि गुरुवर्यमहम् भजामि ॥

मै ऐसे बालधन्वी गुरु जी की पूजा करता हूँ, (जो) कौशिक कुल के प्रकाशमान चाँद है, (जो) श्री यतिराज (श्रीभाष्यकार) के मौसी के सुपुत्र है, (जिनकी) बुद्धि श्रीशैलपूर्ण स्वामीजी के चरणकमलों के प्रती आसक्त है ।

  • किडाम्बि आचान् (चैत्र मास, हस्ता नक्षत्र)

रामानुज पदाम्भोजयुगळी यस्य धीमतः ।
प्राप्यम् च प्रापकम्वन्दे प्रन्णतार्त्तिहरम्गुरुम् ॥

मै ऐसे बुद्धिमान प्रणतार्तिहर गुरू जी की पूजा करता हूँ, (जिन्होने) केवल श्री रामानुजाचार्य को ही उपाय और उपेय माना था ।

  • वडुग नम्बि (चैत्र मास, अश्विनि नक्षत्र)

रामानुजार्य सच्शिष्यम् सालग्राम निवासिनम् ।
पंचमोपाय संपन्नं सालग्रामार्यम् आश्रये ॥

मै श्री वडुगनम्बि के चरणकमलों का आश्रय लेता हूँ, (जो) श्री रामानुजाचार्य के प्रिय शिष्य थे, (जो) श्री शालग्राम क्षेत्र मे निवास करते थे, और पूर्णतः पंञ्च उपाय (आचार्य निष्ठा) मे दृढ विश्वास रखते (याने इस उपाय से संपन्न ) थे ।

  • वन्गि पुरतु नम्बि ()

भारद्वाज कुलोत्भूतम् लक्ष्मणार्य पदाश्रितम् ।
वन्दे वंगिपुराधीसम् सम्पूर्णायम् कृपानिधिम् ॥

मै ऐसे श्री वन्गि पुरत्तु नम्बि की पूजा करता हूँ, (जो) भारद्वाज कुल मे प्रकट हुए, (जिन्होने) श्री रामानुजाचार्य का आश्रय लिया, (जो) केवल करुणा भाव से परिपूर्ण है, (जो) वन्गिपुरम् के नेता थे ।

  • सोमासि आण्डान् (चैत्र मास, आर्द्र नक्षत्र)

नौमि लक्ष्मण योगीन्द्र पादसेवैक धारकम् ।
श्रीरामक्रतुनाथार्यम् श्रीभाष्यामृतसागरम् ॥

मै ऐसे श्री सोमाजियाण्डान जी का पूजन करता हूँ, (जिन्होने) श्री रामानुजाचार्य के दास होने के नाते और आप को बनाये रखने हेतु प्रसन्न्तापूर्वक अनेकानेक सेवाये किये, (जो) श्रीभाष्य के ज्ञान के सागर है और जिनका नाम श्रीराम रखा था ।

  • पिळ्ळै उऱन्गाविल्लि दासर् (माघ मास, आश्लेषा नक्षत्र)

जागरूक धनुष्पाणिम् पाणौ खड्गसमंवितम् रामानुजस्पर्सवेदिम् राद्धान्तार्त्थ प्रकाशकम् ।
भागिनेयद्वययुतम्भाष्यकार भरंवहम् रंगेशमंगळकरं धनुर्दासमहम् भजे ॥

मै ऐसे पिळ्ळै उरंगाविल्लि दास स्वामीजी का आश्रय लेता हूँ, (जो) कभी सोते नही, (जिनके) एक हाथ मे धनुष और दूसरे हाथ मे तलवार सदैव रहता है, (जो) एक दिव्य अनोखी औषधी के समान है (जो लोहे को सोने मे बदल सकते है), जिन्होने अपने जीवन काल मे सदैव वैष्णव स्वभाव के मुख्य आवश्यक सिध्दान्तों को दर्शाया है, जिनके दो चचेरे भाई थे जो भगवद्-भक्त थे, (जिन्होने) अपने आचार्य श्री रामानुजाचार्य के मठ को संभाला, और जो सदैव श्री रंगनाथ भगवान का मंगलाशासन करते थे ।

  • तिरुक्कुरुहैप्पिरान् पिळ्ळान् (आश्वयुज मास,  पूर्वाषाड नक्षत्र)

द्राविडागम सारज्ञम् रामानुज पदाश्रितम् ।
रुचिरम् (सर्वग्यम्) कुरुहेसार्यम् नमामि सिरसांहवम् ॥

मै ऐसे श्री कुरुगेशाचार्य का स्मरण निरन्तर करता रहूंगा, (जो) द्राविद वेद के तत्वसार से भलि-भांति परचित और निपुण थे, (जिन्होने) श्री रामानुजाचार्य के चरणकमलों का आश्रय लिया, और (जो) सबसे बुध्दिमान थे ।

  • एंगळाळ्वान् (चैत्र मास, रोहिणि नक्षत्र)

श्रीविष्णुचित्तपदपंकजसंश्रयाय चेतोममस्पृहयते किमतः परेण ।
नोचेन् ममापि यतिशेखरभारतीनाम् भावः कथम् भवितुमर्हति वाग्विधेयः ॥

क्या फ़ायदा होगा मेरा अगर मैने श्री विष्णुचित्त स्वामी जी के चरणकमलों को त्यागकर अन्यों का आश्रय लूंगा क्योंकि मेरा मन सदैव चाहता है की ऐसे विष्णुचित्त जी जैसे दिव्यपुरुष के चरणकमलों के प्रति आसक्त रहूँ । कैसे मै श्री यतिराज जी के दिव्य वाक्यों (वचनों) का पालन कर सकूंगा अगर मैने ऐसे श्री एन्गळाळ्वान के चरणकमलों का आश्रय नही लिया ।

  • अनन्ताळ्वान् (चैत्र मास, चित्रा नक्षत्र)

अखिलात्म गुणावासम् अज्ञानतिमिरापहम् ।
आश्रितानांसुसरणम् वन्दे अनन्तार्यदेशिकम् ॥

मै ऐसे आचार्य अनन्ताळ्वान का सिरसाभिवन्दन करता हूँ, (जो) दिव्यगुणों के आकार स्वरूप है, (जो) अज्ञानता के अंधकार का निर्मूलन करते है, (जो) उन सभी के लिये उपाय के आकारस्वरूप है जिन्होने इनके चरणकमलों का आश्रय लिया है ।

  • तिरुवरन्गतु अमुदनार् (फलगुनि मास, हस्ता नक्षत्र)

मीने हस्थसमुद्भूतम् श्रीरंगामृतम् आश्रये ।
कविंप्रपन्नगायत्र्याः कूरेशपदसंश्रितम् ॥

मै ऐसे श्रीरंगनाथगुरुजी का आश्रय लेता हूँ, (जो) मीन नक्षत्र मे रंगार्यर के पुत्र के रूप मे प्रकट हुए, और जिन्होने श्री रामानुजाचार्य जी का आश्रय लिया ।

  • नडातुर् अम्मळ् (चैत्र मास, चित्रा नक्षत्र)

वन्देहम् वरदार्यम् तम्वत्साबिजनभूषणम् ।
भाष्यामृत प्रदानाद्य संजीवयति मामपि ॥

मै ऐसे श्री वरदाचार्य (नडातूरम्माळ) स्वामी जी का पुनः पुनः अभिवन्दन करता हूँ, (जो) श्रीवत्स कुल के प्रकाशमान दीपक है, (जिन्होने) मेरे अन्दर की सच्ची भावनाओं (आत्म-तत्व, परमात्मा-तत्व) को श्रीभाष्य के माध्यम से जाग्रुक किया ।

  • वेदव्यासभट्टर् (वैशाख मास, अनुराधा नक्षत्र)

पौत्रम् श्रीराममिश्रस्य श्रीवत्सांगस्य नंदनम् ।
रामसूरिम् भजे भट्टपरासारवरानुजम् ॥

मै ऐसे श्री रामपिळ्ळै (वेद्व्यासभट्टर) जी का आश्रय लेता हूँ, (जो) श्रीराम मिश्र (कूरत्ताळ्वार – आळ्वान के पिताजी) जी के पोते है, (जो) श्रीवत्सांग (आळ्वान) के पुत्र है, और पराशरभट्टर जी के छोटे भाई है ।

  • कूर नारायण जीयर (मार्गशीष मास, ज्येष्ठ नक्षत्र)

श्रीपराशरभट्टार्य शिष्यम् श्रीरंगपालकम् । नारायणमुनिम् वन्दे ज्ञानदिगुणसागरम् ॥

मै ऐसे श्री नारायणमुनि जी की पूजा करता हूँ, (जो) श्री पराशरभट्टर के शिष्य है, (जो) श्रीरंग क्षेत्र के पालक है, (जो) ज्ञान-भक्ति-वैराग्य इत्यादि गुणों से संपन्न है ।

  • श्रुतप्रकासिकाभट्टर् (सुदर्शन सूरि)

यतीन्द्र कृत भाष्यार्था यद् व्याख्यानेन दर्शिताः ।
वरम् सुदर्शनार्यम्तम्वन्दे कूरकुलाधिपम् ॥

मै ऐसे गौरवनीय श्री सुदर्शन भट्टर जी का अभिवन्दन करता हूँ, (जो) कूरत्ताळ्वान के वंश के नायक है, और जिनकी व्याख्या मे यतिराज स्वामी जी के श्रीभाष्य सिध्दान्तों के अर्थों का विवरण पूर्ण रूप से किया गया है ।

  • पेरियवाचान् पिळ्ळै (श्रावन मास, रोहिणि नक्षत्र)

श्रीमत् कृष्ण समाह्वाय नमो यामुन सूनवे ।
यत् कटाक्षैकलक्ष्याणम् सुलभस्श्रीधरस्सदा ॥

मेरे पूजा सिर्फ़ और सिर्फ़ श्री कृष्ण (पेरियाच्चानपिळ्ळै) जी को ही श्रेय है क्योंकि (वह) यामानाचार्य के पुत्र है, और जिनकी की कृपा से श्रीमन् नारायण की प्राप्ति सुगमता से होती है ।

  • ईयुण्णि माधव पेरुमाळ् (कार्तीक मास, भरणि नक्षत्र)

लोकाचार्य पदाम्भोज संश्रयम् करुणाम्बुधिम् ।
वेदान्तद्वयसम्पन्नम् माधवार्यमहम् भजे ॥

मै ऐसे श्री ईयुण्णि माधवाचार्य जी की वन्दना करता हूँ, जिन्होने श्री लोकाचार्य (नम्पिळ्ळै) जी का आश्रय लिया, (जो) कृपा गुण रूपी सागर है, (जो) दोनो वेदों (संस्कृत और द्राविद) के महान संपत्ति से सम्पन्न है ।

  • ईयुण्णि पद्मनाभ पेरुमाळ् (स्वाति)

माधवाचार्य सत्पुत्रम् तत्पादकमलाश्रितम् ।
वात्सल्यादिगुणैर्युक्तम्पद्मनाभगुरुम् भजे ॥

मै ऐसे ईयुण्णि पद्मनाभाचार्य जी की वन्दना करता हूँ, (जो) श्री माधवाचार्य के सुपुत्र है, (जिन्होने) श्री माधावाचार्य जी का आश्रय लिया है और (जो) दिव्य कल्याण गुणों से सम्पन्न है ।

  • नालूर् पिळ्ळै (पुष्य)

चथुर्ग्राम कुलोद्भूतम् द्राविड ब्रह्म वेदिनम् ।
यज्ञार्य वंशतिलकम् श्रीवराहमहम् भजे ॥

मै ऐसे श्री वराह (नालूरपिळ्ळै) जी का नमन करता हूँ, (जो) नालूरान् (कूरत्ताळ्वार के शिष्य के वंश) के वंशज है, (जो) श्री रामानुजाचार्य के शिष्य (एच्चान्) के कुल के आभूषण है, और जो द्राविद वेद के सार तत्व को भलि-भांति जानते है ।

  • नालूराचान् पिळ्ळै (मार्गशीष मास, भरणि नक्षत्र)

नमोस्तु देवराजाय चथुर्ग्राम निवासिने ।
रामानुजार्य दासस्य सुताय गुणसालिने ॥

मै अपने नमन ऐसे देवरार (नालूराचान् पिळ्ळै) को समर्पित करता हूँ, (जो) चौथे (नालूर – नाल् – चार, ऊर – ग्राम) ग्राम मे निवास करते थे, (जो) रामानुजार्य (नालूरपिळ्ळै) के पुत्र है, और (जो) दिव्य कल्याण गुणों से सम्पन्न है ।

  • नडुविल् तिरुवीधि पिल्लै (आश्वयुज मास, धनिष्ठा नक्षत्र)

भट्टर्लोकाचार्य पदासक्तम् मद्यवीधि निवासिनम् ।
श्रीवत्सचिह्नवम्शाब्दिसोमम् भट्टार्यमाश्रये ॥

मै ऐसे श्री नडुविल्तिरुवीधिपिळ्ळैभट्टर का आश्रय लेता हूँ, (जो) स्वाभाविक रूप से श्री नम्पिळ्ळै जी चरणों मे आसक्त थे, (जो) नडुविल् तिरुवीधि ( श्रीरंग मे एक गली / रास्ता का नाम) मे निवास करते थे, (जो) कूरत्ताळ्वान जी के सागर रूपी वंश के दीप्तिमान चाँद के समान थे ।

  • पिंभळगिय पेरुमाळ् जीयर् (आश्वयुज मास, शठभिष नक्षत्र)

ज्ञानवैराग्यसम्पूर्णम् पश्चात् सुन्दरदेशिकम् ।
द्रविडोपनिषद्भाष्यतायिनम्मद्गुरुम् भजे ॥

मै अपने आचार्य पश्चात सुन्दर देशिक (पिंभगळिय पेरुमाळ जीयर) जी की पूजा करता हूँ, (जिनके) अन्दर ज्ञान और वैराग्य कूट कुट कर भरा है, और जिन्होने द्राविद वेद ( तिरुवाय्मोळि) के तत्वों को समझाया ।

  • अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् (मार्गशीष मास, आश्वयुज नक्षत्र)

नायनार्द्राविडाम्नाय हृदयम् गुरुपर्वक्रमागतम् ।
रम्यजामातृदेवेन दर्शितम् कृष्णसूनुना ॥

मै ऐसे अळगिय मणवाळ पेरुमाळ नायनार जी का अभिवन्दन करता हूँ, (जो) श्री कृष्ण (वडुक्कु तिरुवीधि पिळ्ळै) जी के पुत्र है, और जिन्होने अपने कृपा गुण से श्री नम्माळ्वार के तिरुवाय्मोळि के दिव्यार्थों को प्रकाशित किया जो केवल आचार्य परंपरा से प्राप्त होता है ।

  • नायनाराचान् पिळ्ळै (श्रावण मास, रोहिणि नक्षत्र)

श्रुत्यर्थसारजनकम् स्मृतिबालमित्रम् पद्मोल्लसद् भगवदन्घ्रि पुराणबन्धुम् ।
ज्ञानादिराजमभयप्रदराजसूनुम् अस्मत् गुरुम् परमकारुणिकम् नमामि ॥

मै अपने कृपालु आचार्य जी का वन्दन करता हूँ, (जिन्होने) वेदों के सार को सींचकर प्रकाशित किया, (जो) स्मृति जैसे कमल के लिये सूर्य की भांति प्रकाशमान है, (जो) दिव्य ज्ञान के चक्रवर्ति राजा है, और पेरियवाच्चानपिळ्ळै (अभयप्रदराजा) जी के सुपुत्र है ।

  •  वादि केसरि अळगिय मणवाळ जीयर (ज्येष्ठ मास, स्वाति नक्षत्र)

सुन्दरजामात्रुमुनेः प्रपद्ये चरणाम्भुजम् ।
सम्सारार्णव सम्मग्न जन्तु सन्तारपोतकम् ॥

मै ऐसे वादिकेसरि अळगिय मणवाळ जीयर स्वामी जी के चरणकमलों मे शरणगत हूँ, जिनके चरणकमल इस भवसागर मे दूबे हुए जीवात्मावों को पार कराने मे सक्षम एक नौका की तरह समान है ।

  • कूर कुलोतम दासर् (आश्वयुज मास, आर्द्र नक्षत्र)

लोकाचार्य कृपापात्रम् कौण्डिन्य कुल भूषणम् ।
समस्तात्म गुणावासम् वन्दे कूर कुलोतमम् ॥

मै ऐसे कूर कुलोत्तम दास स्वामी जी का अभिवन्दन करता हूँ, (जो) श्री पिळ्ळै लोकाचार्य के कृपा के पात्र है, (जो) कौण्डिन्य कुल को सुसज्जित करने वालि शिखर मणि है, (और) समस्त सुभ कल्याण गुणों के निवास है ।

  • विळान् चोलै पिल्लै (आश्वयुज मास, उत्तर भाद्रपद नक्षत्र)

तुलाहिर्बुध्न्य सम्भूतम् श्रीलोकार्य पदाश्रितम् ।
सप्तगाथा प्रवक्तारम् नारायण महंभजे ॥

मै ऐसे श्री नारायाण (विळान्चोलै पिळ्ळै) जी की पूजा करता हूँ, (जो) तुला मास के उत्तरा नक्षत्र मे प्रकट हुए, (जिन्होने) पिळ्ळै लोकाचार्य जी का आश्रय लिया और जिन्होने सप्तकातै नामक ग्रंथ की रचना किये ।

अनुवादक टिप्पणि – सप्तकातै ग्रंथ पिळ्ळै लोकाचार्य जी के श्री वचन भूषण के सार तत्व को दर्शाति है ।

  • वेदान्ताचार्य (भाद्रपद मास, श्रवन नक्षत्र)

र्श्रीमान् वेंकटनाथार्यः कवितार्किककेसरी ।
वेदान्ताचार्यवर्यो मे सन्निधत्ताम् सदा हृदि ॥

ऐसे श्रीमान् वेदान्ताचार्य स्वामी जी मेरे हृदय मे सदैव बिराजमान रहे, (जो) विरोधि कवियों और विवादियों के लिये सिंह के समान है, दिव्य ज्ञान, वैराग्य और भक्ति जैसे अनेकानेक गुणों के भण्डार है, और जिन्हे हम वेंकटनाथ के नाम जानते है ।

  • तिरुनारायणपुरतु आय्जनन्याचार्यर् (आश्वयुज मास, पूर्वाषाड नक्षत्र)

आचार्य हृदयस्यार्थाः सकला येन दर्शिताः ।
श्रीसानुदासममलम्देवराजम् तमाश्रये ॥

मै ऐसे निष्कलंक, श्री तिरुनारायणपुरत्त्याय जी के शरणागत हूँ, (जिन्होने) बडि कृपा से आचार्य हृदय के तत्वों को बहुत सुन्दर रूप मे समझाया है, और जो श्रीशानु दास और देवराज इत्यादि नामों से जाने गए है ।

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अब ऐसे आचायों के तनियन् प्रस्तुत करेंगे जो मनवाळ मामुनि के समय थे और जो उनके बाद हुए है ।

रम्यजामातृयोगीन्द्रपादरेखामयम् सदा ।
तदायत्तात्मसत्तादिम् रामानुज मुनिम् भजे ॥

मै ऐसे श्री पोन्नडिक्काळ जीयर स्वामीजी की पूजा करता हूँ, (जो) श्री मणवाळमामुनि (वरवरमुनि) के दिव्यचरणकमलों के चिह्न के समान है, और जो अपने आचार्य की कृपा पर पूर्णतया निर्भर होकर अपने शेषत्व (श्री वरवरमुनि के सेवक) यानि अपने भरण-पोषन, सेवावों इत्यादि को दर्शाते है ।

  • पतंगि परवस्तु पट्टर्पिरान् जीयर (कार्तीक मास, पुष्य नक्षत्र)

रम्यजामात्रुयोगीन्द्र पादसेवैकधारकम् । भट्टनाथमुनिम् वन्दे वात्सल्यादिगुणार्णवम् ॥

मै ऐसे भट्टनाथमुनि जी ( परवस्तु पट्टर्पिरान जीयर ) जी की पूजा करता हूँ, (जो) अपना भरण-पोषन अपने आचार्य (श्री वरवरमुनि) के चरणकमलों की सेवा से करते है, और (जो) दिव्य गुण जैसे वात्सल्य (एक माँ समान सहनशीलता) रूपि सागर से सम्पन्न है ।

  • कोइल् कन्दाडै अण्णन् (भाद्रपद मास, पूर्व भाद्रपद नक्षत्र)

सकल वेदान्त सारार्थ पूर्णाशयम् विपुल वाधूल गोत्रोद्भवानाम् वरम् ।
रुचिर जामातृ योगीन्द्र पादाश्रयम् वरद नारायणम् मद्गुरुम् सम्श्रये ॥

मै अपने आचार्य (श्री वरद नारायण) (कोइल् कन्दाडै अण्णन) के चरणकमलों मे आश्रित हूँ, (जिन्होने) अपने हृदय मे वेदान्त के सिद्धान्तों का अवलोकन किया है , (जो) वाधूल गोत्र के वंश मे सबसे उत्तम है, और जिन्होने श्री वरवरमुनि के चरणकमलों का आश्रय लिया है ।

  • प्रतिवादि भयन्करम् अण्णन् (ज्येष्ठ मास, पुष्य नक्षत्र)

वेदान्त देशिक कटाक्ष विवृद्दभोदम् कान्तोपयन्तृ यमिनः करुणैकपात्रम् ।
वत्सान्ववायमनवद्य गुणैरुपेतम् भक्त्या भजामि परवादि भयन्करार्यम् ॥

प्रेमामृत भक्ति भाव से, मै ऐसे श्री प्रतिवादि भयन्करमण्णा जी का आश्रय लेता हूँ, (जिनके) ज्ञान की संवृद्धि श्री वेदान्तदेशिक स्वामीजी के कृपाकटाक्ष से हुई, (जो) श्री वरवरमुनि के दया के पात्र है, (जो) श्रीवत्सगोत्र मे प्रकट हुए, (जो) अकलंकित और दिव्य गुणों से सम्पन्न है ।

  • एऱुम्बियप्पा (आश्वयुजमास, रेवति नक्षत्र)

सौम्य जामातृ योगीन्द्र शरणाम्भुज शठ्पदम् ।
देवराज गुरुम् वन्दे दिव्य ज्ञान प्रदम् शुभम् ॥

मै ऐसे श्री देवराजगुरु जी का अभिवन्दन करता हूँ, (जो) वरवरमुनि के चरणकमलों मे आसक्त भौंरा है, (जो) अपने अनुग्रह से दिव्य ज्ञान को प्रदान करते है, और (जो) स्वाभाविक रूप से अति उत्तम और शुभ है ।

  • अपिळ्ळै

कान्तोपाययन्त्रुयोगीन्द्र चरणाम्बुजशठ्पदम् । वत्सान्वयभवम्वन्दे प्रणतार्तिहरम्गुरुम् ॥

मै ऐसे श्री प्रणतार्ति गुरु जी का अभिवन्दन करता हूँ, (जो) एक भौरें की तरह श्री वरवरमुनि के चरणकमल मे आसक्त है, और (जो) श्रीवत्सगोत्र के कुल मे प्रकट हुए है ।

  • अप्पिळार

कान्तोपाययन्त्रुयोगीन्द्र सर्वकैंकर्यदूर्वहम् । तदेकदैवतम्सौम्यम् रामानुज गुरुम्भजे ॥

मै ऐसे रामानुज (अप्पिळ्ळार) जी का अभिवन्दन करतँ हूँ, (जिन्होने) श्री वरवरमुनि के प्रति सारे कैंकर्य किये, और (जिसने) श्री वरवरमुनि को स्वामि और प्रभु माना है ।

  • कोइल् कन्दाडै अप्पन (भाद्रपद मास, माघ नक्षत्र)

वरवरदगुरुचरणम् वरवरमुनिवर्यगणकृपापात्रम् ।
प्रवरगुणरत्नजलधिम् प्रणमामि श्रीनिवास गुरुवर्यम् ॥

मै ऐसे श्री श्रीनिवासाचार्य (कोइल् कन्दाडै अप्पन) जी के आश्रित होकर उनकी वन्दना करता हूँ, (जो) अपने आचार्य (वरदनारायणगुरु – कोइल् कन्दाडै अण्णन) के चरणकमलों को ही उपाय मानते है, (जो) श्री वरवरमुनि के दया के पात्र है, और जो रत्नों के समान अनेनानेक सागर रूपी दिव्यगुणों से संपन्न है ।

  • श्रीपेरुम्बुदूर आदि यतिराज जीयर (आश्वयुजमास, पुष्य नक्षत्र)

श्रीमत् रामानुजान्घ्रि प्रवण वरमुनेः पादुकम् जातभृंगम्
       श्रीमत् वानाद्रि रामानुज गणगुरु सत्वैभव स्तोत्र दीक्षम् ।
वादूल श्रीनिवासार्य चरणशरणम् तत् कृपा लभ्ध भाष्यम्
          वन्दे प्राग्यम् यतीन्द्रम् वरवरदगुरोः प्राप्त भक्तामृतार्त्थम् ॥

मै ऐसे उत्तम बुद्धिमान आदि यतिराज जीयर जी का अभिवन्दन करता हूँ, (जो) भौरें की तरह श्री यतीन्द्रप्रणवर के चरणकमल मे आसक्त है , (जो) सदैव श्री पोण्णडिक्काल जीयर जी के वैभव की प्रशंसा करते है, (जिन्होने) श्री वादूल श्रीनिवाचार्य की कृपाकटाक्ष से श्रीभाष्य सीखा, और जिन्होने द्राविद वेद (तिरुवाय्मोळि) श्री वरदाचार्य (कोइल अण्णन) से सीखा ।

  • अप्पाच्चियारण्णा (श्रावनमास, हस्तानक्षत्र)

श्रीमत् वानमहाशैल रामानुज मुनिपिर्यम् ।
वाधूल वरदाचार्यम् वन्दे वात्सल्य सागरम् ॥

मै ऐसे श्री वादूल वरदाचार्य (अप्पाच्चियारण्णा) जी का अभिवन्दन करता हूँ, (जो) वानमामलै रामानुज जीयर (पोन्नडिक्काळ जीयर) के अत्यन्त प्रिय है, और जो वात्सल्य भाव से सम्पन्न है ।

  • पिळ्ळै लोकम् जीयर (चैत्रमास, श्रवननक्षत्र)

श्रीशठारि गुरोर्दिव्य श्रीपादाभ्ज मधुव्रतम् ।
श्रीमत्यतीन्द्रप्रवणम् श्रीलोकार्यमुनिंभजे ॥

मै ऐसे श्री पिळ्ळै लोकाचार्य जीयर जी की वन्दना करता हूँ, (जो) श्री शठगोप गुरु के चरणकमल के भौरें है, और यतीन्द्रप्रणवम् (श्री वरवरमुनि के जीवन चरित्र) नामक ग्रंथ के लेखक है ।

  • तिरुमळिसै अण्णावप्पन्गार् (ज्येष्ठ मास, धनिष्ठ नक्षत्र)

श्रीमद् वाधुल नरसिम्ह गुरोस्तनूजम् श्रीमत्तदीयपदपंकज भृंगराजम् ।
श्रीरंगराज वरदार्य कृपात्थ भाष्यम् सेवेसदारगुवरार्यम् उदारचर्यम् ॥

मै ऐसे श्री रघुवर्यार्य (वादूल वीर राघाचार्य – अण्णवप्पन्गार) की सेवा करता हूँ, (जो) वादूल नरसिंहाचार्य के पुत्र है, (जो) नरसिंहाचार्य के चरणकमल पर आसक्त भौरे है, (जिन्होने) श्रीरंगाचार्य और वरदाचार्य से श्रीभाष्य सीखा और (जो) दूसरों को वरदान देने मे महा दयालु है  ।

  • अप्पन् तिरुवेंकट रामानुज एम्बार जीयर

श्रीवाधूल रमाप्रवाळ रुचिर स्रक्सैंय नाताम्चज
श्रीकुर्वीन्द्रम् महार्य लब्ध निजसत्सत्तम् छृता भीष्टतम् |
श्रीरामानुज मुख्य देशिकलसत् कैन्कर्य संस्थापकम्
श्रीमत्वेंकटलक्ष्मणार्य यमिनम् तंसत्गुणम् भावये ॥

मेरा हृदय ऐसे तिरुवेंकटरामानुजजीयर स्वामी जी के दिव्य गुणों की अनुभूति का रसास्वादन करता है, (जो) वादूलाचार्य के वंश के माला मे एक दिव्य प्रकाशमान मोती और श्री विश्वक्सेन के अंशज है, (जो) आचार्यों मे सर्वश्रेष्ठ है (जो आश्रित जनों की मनोकामनावों को प्रदान कर सकते है), (जिन्होने) दृधता से श्री रामानुजाचार्य (जो हमारे आचार्य रत्नहार मे सर्वश्रेष्ठ प्रधान आचार्य है) के अनेकानेक कैंकर्य किये (जैसे तिरुमंजन कट्टियम्, चैत्र मास मे तिरुवादिरै उत्सव के दौरान नित्य-लीला विभूति की घोषना इत्यादि) ।

अडियेन सेतलूर सीरिय श्रीहर्ष केशव कार्तीक रामानुज दासन्
अडियेन वैजयन्त्याण्डाळ् रामानुज दासि

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