श्रुत प्रकाशिका भट्टर् (सुदर्शन सूरि)

श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः

तिरुनक्शत्रः अपरिचित्

अवतार् स्तलः श्रीरन्गम्

आचार्य: वेदव्यास् भट्टर् और् नडादूरम्माळ्

लेखन् :  श्रुत प्रकाशिकै, श्रुत प्रदीपिकै, (तात्पर्य दीपिका) वेदार्थ् सन्ग्रह् की व्याख्यान्, शरनागति गद्य और् शुभाल उपनिशद् की व्याख्यान् , शुख पक्शीयम्

ये वेद् व्यास् भट्टर् के पोते थे. इनका नामकरण सुदर्शन सूरी (सुदर्शन भट्टर्) किया गया. ये हमारे सम्प्रदाय् के महान विद्वान बने. इन्होने ही श्री भाश्य के महत्वपूर्ण और गहरे टिप्पणियां श्रुत प्रकाशिकै तथा श्रुत प्रदीपिकै लिखे. इन ग्रंथों के नाम् इन्होने ऐसे रखा ताकी उपाधि से ही पता चले कि ये स्वामि रामानुज् से प्रकटित नडादूरम्माळ् द्वारा मिले विषय हैं|

अम्माळ् से श्री भाश्य सीख्ने के लिये भट्टर् कान्चीपुरम् पधारे. भट्टर् के अक्लमन्द् और् प्रतिभा से प्रभावित अम्माळ् अपना कालक्शेप् की शुरुवात भट्टर् की पहुँचने के बाद् ही करते थे. अम्माळ् के अन्य शिष्यों की सोच थी कि भट्टर् के उच्च परिवार की पृष्ठभूमि के कारण अम्माळ् भट्टर् के प्रति पक्शपात थे. भट्टर् की यश समझाने के लिये अम्माळ् एक बार कालक्शेप् के बीच रुखे और पिछले दिन की प्रसन्ग समझाने को वहा उपस्थित शिष्यों को आदेश दिया| इस पर उनके सारे शिष्य हैरान हुये और् मौन हो गये| उस समय भट्टर एक अक्षर भी बिना छोडे पिछले दिन की प्रसन्ग की परिपूर्ण सूचना दिया| इस सम्भव से वहाँ उपस्थित अम्माळ् के अन्य शिष्यों को भट्टर् की महानता की ज्ञान हुयी|

नम्पिळ्ळै तथा पेरियवाच्चान्पिळ्ळै के जैसे भट्टर् भी दिव्यप्रभन्धों के गहरे अर्थ स्थापित करने वाले टिप्पणियाँ लिखे| श्रीभाश्य अथवा वेदार्थ् सन्ग्रह् की टिप्पणियाँ लिखकर संस्कृत वेदान्त के गहरे अर्थो कि स्थाप्ना की|

इस प्रकार हम श्रुत प्रकाशिका भट्टर् के यशश्वी जीवन के कुछ झलक देखे. वे एक सम्पूर्ण महान विद्वान थे और नडदूरम्माळ् के अत्यन्त प्रीय शिष्य थे. हम उनकी चरण कमलो मे प्रर्थना करें कि हमे भी उनकी भागवत निश्ठा में से किन्चित प्राप्त् हो.

श्रुत प्राकसिका भट्टर् कि तनियन् :

यथीन्द्र क्रुत भाश्यार्था यद् व्याख्यानेन दर्शिताः |
वरम् सुदर्शनार्यम् तम् वन्दे कूर कुलादिपम् ||

अडियेन् प्रीति रामानुज दासी

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