कूर कुलोत्तम दासर्

श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः

जन्म नक्षत्र: अश्विनी, आद्रा

अवतार स्थल: श्रीरंगम

आचार्य: वडक्कू तिरुविधि पिल्लै (कालक्षेप आचार्य पिल्लै लोकाचार्य और अलगिय मणवाल पेरुमाल नायनार्)

kurakulothama-dhasar

उनका जन्म श्रीरंगम में हुआ और वे कूर कुलोत्तम् नायन् के नाम से भी जाने जाते थे।

कूर कुलोत्तम दासर् ने तिरुमलै आलवार (तिरुवायमोली पिल्लै/ शैलेश स्वामीजी) को फिर से संप्रदाय में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे पिल्लै लोकाचार्य के निकट सहयोगियों में से एक हैं और उन्होंने उनके साथ तिरुवरंगन उला (नम्पेरुमाल की कलाब काल की यात्रा) के दौरान यात्रा की थी। ज्योतिषकुड़ी में, पिल्लै लोकाचार्य अपने अंतिम समय में, कूर कुलोत्तम दासर्, तिरुक्कण्णकुड़ी पिल्लै, तिरुप्पुत्कुली जीयर, नालूर् पिळ्ळै और विलान्चोलै पिल्लै को तिरुमलै आलवार (जिनका पञ्च संस्कार बहुत ही छोटी आयु में पिल्लै लोकाचार्य के चरण कमलों में हुआ था) को संप्रदाय के सभी दिव्य ज्ञान प्रदान करने और उन्हें संप्रदाय के प्रमुख बनाने का निर्देश देते हैं।

पहले कूर कुलोत्तम दासर्, तिरुमलै आलवार से भेंट करने जाते हैं, जो मदुरै के राज्य में मंत्री थे। तिरुमलै आलवार की प्रशासन और तमिल भाषा की विशेषज्ञता के कारण और राजा की अल्प आयु में मृत्यु के बाद वे राज्य के उत्तरदायित्व और युवराज की देखभाल करते थे। जब कूर कुलोत्तम दासर् वहाँ पहुंचे, उन्होंने नम्मालवार का तिरुविरुत्तम का पाठ शरू किया। तिरुमलै आलवार, पालकी में अपने नगर-भ्रमण पर थे और तभी उनका ध्यान कूर कुलोत्तम दासर् पर जाता है। पालकी से नीचे उतरे बिना ही वे कूर कुलोत्तम दासर् से उसका प्रबंध का अर्थ पूछते और प्रतिउत्तर में दासर उन पर थूकते हैं। इसे देखकर तिरुमलै आलवार के परिचारक उत्तेजित हो जाते हैं और कूर कुलोत्तम दासर् को दंड देने के लिए आगे बढ़ते हैं परंतु तिरुमलै आलवार द्वारा रोक दिए जाते हैं, जो दासर की महानता को जान जाते हैं।

तिरुमलै आलवार अपने महल को लौटते हैं और सम्पूर्ण द्रष्टांत अपनी सौतेली माता को बताते हैं जो उनका मार्गदर्शन कर रही थी, वे उन्हें पिल्लै लोकाचार्य से उनका संबंध स्मरण कराती है और कूर कुलोत्तम दासर् की महिमा बताती है। फिर वे कूर कुलोत्तम दासर् को ढूँढना प्रारंभ करते हैं।

एक बार तिरुमलै आलवार हाथी पर जा रहे थे, तब कूर कुलोत्तम दासर् एक ऊँची जगह पर चढ़ जाते हैं, जहाँ से आलवार उन्हें देख सके। तिरुमलै आलवार उन्हें पहचान जाते हैं और तुरंत हाथी से नीचे उतरकर कूर कुलोत्तम दासर् के चरण कमलों में लेट जाते हैं और उनका वैभवगान करते हैं। फिर वे कूर कुलोत्तम दासर् को अपने महल में लेकर आते हैं और पिल्लै लोकाचार्य द्वारा प्रदान किये हुए सभी मूल्यवान निर्देश उनसे संक्षेप में समझते हैं। उन निर्देशों से पवित्र होकर, वे कूर कुलोत्तम दासर् से विनती करते हैं कि वे प्रतिदिन प्रातः अनुष्ठान में पधारकर उन्हें संप्रदाय विषय का ज्ञान प्रदान करें, क्योंकि अन्य समय में वह राज्य कार्यों में व्यस्त रहते हैं। वे कूर कुलोत्तम दासर् के लिए वैगै नदी के किनारे निवास की व्यवस्था करते हैं , और आजीविका के लिए सभी आवश्यक वस्तुएँ भी उपलब्ध कराते हैं।

कूर कुलोत्तम दासर् प्रतिदिन तिरुमलै आलवार के पास जाना प्रारंभ करते हैं। एक दिन वे देखते हैं कि तिरुमलै आलवार उर्ध्वपुण्ड्र धारण करते हुए, पिल्लै लोकाचार्य की तनियन का पाठ कर रहे थे (उर्ध्वपुण्ड्र धारण करते हुए श्री आचार्य चरण का ध्यान करना चाहिए) और बहुत प्रसन्न होते हैं। वे उन्हें सभी दिव्य अर्थो का अध्यापन प्रारंभ करते हैं परंतु एक सुबह वे महल नहीं आ पाए। तब तिरुमलै आलवार अपने परिचारकों को कूर कुलोत्तम दासर् के पास भेजते हैं, परंतु उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। इसलिए अपने आचार्य के प्रति अत्यंत प्रीति के साथ वे स्वयं उनके पास जाते हैं और कूर कुलोत्तम दासर् उन्हें कुछ समय तक प्रतीक्षा कराते हैं। अंततः वे जाकर कूर कुलोत्तम दासर् के चरण कमलों में गिर जाते हैं और उनसे अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करते हैं। क्योंकि वे कालक्षेप के समय आते हैं, वे उसमें सम्मलित होते हैं और कूर कुलोत्तम दासर् का श्रीपाद तीर्थ और शेष प्रसाद स्वीकार करते हैं। भगवत दासों के शेष पसाद में किसी को भी पवित्र करने की महान क्षमता होती है और उसी प्रसाद के प्रभाव से तिरुमलै आलवार में भी महान परिवर्तन हुआ। उसे पाने के बाद, तिरुमलै आलवार ने बारम्बार “कूर कुलोत्तम् दास नायन् तिरुवडीगले शरणं” कहना प्रारंभ कर दिया और राज्य और सांसारिक प्रकरणों के प्रति अपने अनुराग को त्याग दिया।

उसके बाद कूर कुलोत्तम दासर् सिक्किल (तिरुप्पुल्लाणि के समीप एक स्थान) के लिए प्रस्थान करते हैं। तिरुमलै आलवार अपने राज्य के सभी उत्तरदायित्वों को त्यागकर कूर कुलोत्तम दासर् के साथ जाते हैं और वहीँ रहते हुए उनकी संपूर्ण सेवा करते हैं। अपने अंतिम दिनों में, कूर कुलोत्तम दासर्, तिरुमलै आलवार को विलान्चोलै पिल्लै और तिरुक्कण्णकुड़ी पिल्लै के पास जाकर संप्रदाय विषय में और अधिक सीखने का निर्देश देते हैं। अंत में वे पिल्लै लोकाचार्य का ध्यान करते हुए, प्राकृत शरीर को छोड़कर परमपद प्रस्थान करते हैं।

तिरुमलै आलवार को सुधारने के लिए किये गए उनके अनेक प्रयासों और पिल्लै लोकाचार्य से सीखे हुए दिव्य ज्ञान को तिरुमलै आलवार तक पहुंचाने में, उनके द्वारा की गयी असीम कृपा के कारण मामुनिगल, उनकी महिमा का वर्णन करते हुए उन्हें “कूर कुलोत्तम् दासं उदारं” से संबोधित करते हैं (वह जो बहुत ही दयालु और उदार है)। रहस्य ग्रंथ कालक्षेप परंपरा में उनका एक महत्वपूर्ण स्थान है और उनकी महिमा का वर्णन रहस्य ग्रंथों की कई तनियों में किया गया है।

श्री वचन भूषण दिव्य शास्त्र में, यह निर्णय किया गया है कि एक शिष्य के लिए “आचार्य अभिमानमे उत्थारगम्”। इसके व्याख्यान में मामुनिगल समझाते हैं कि एक प्रपन्न के लिए जिसने सभी अन्य उपायों का त्याग किया है, आचार्य कि निर्हेतुक कृपा और श्री आचार्य का यह विचार कि “यह मेरा शिष्य है“ ही मोक्ष का एकमात्र मार्ग है। पिल्लै लोकाचार्य, कूर कुलोत्तम दासर् और तिरुवैमोली पिल्लै के चरित्र में हम यह स्पष्ट देख सकते हैं। यह पिल्लै लोकाचार्य का तिरुवायमोली पिल्लै के प्रति अभिमान और कूर कुलोत्तम दासर् का अभिमान और अथक प्रयास है, जिन्होंने संप्रदाय को महान आचार्य तिरुवायमोली पिल्लै (शैलेश स्वामीजी) को दिए, जिन्होंने फिर संप्रदाय को अलगिय मणवाल मामुनिगल को दिए।

हम दास भी कूर कुलोत्तम दासर् का स्मरण करें जो सदा-सर्वदा पिल्लै लोकाचार्य का स्मरण किया करते थे।

कूर कुलोत्तम दासर् की तनियन:

लोकाचार्य कृपापात्रं कौण्डिन्य कुल भूषणं ।
समस्तात्म गुणावासं वन्दे कूर कुलोत्तमं ।।

अदियेन् भगवति रामानुजदासी

आधार: https://guruparamparai.wordpress.com/2012/11/02/kura-kulothama-dhasar/

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