श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः
अरुळाळ पेरुमाल एम्पेरुमानार – तिरुप्पाडगम्
तिरुनक्षत्रम — भरणी, वृश्चिक मास
अवतार स्थान — विन्जिमूर
आचार्य — एम्पेरुमानार (भगवत रामानुज)
शिष्य — अनन्ताळ्वान, एच्चान, तोण्डनूर नम्बि, मरुदूर नम्बि आदी
कार्य — ज्ञान सारम, प्रमेय सारम् आदी
अरुळाळपेरुमाल एम्पेरुमानार ने आन्द्र प्रदेश के विन्जिमूर मे पैदा हुये थे। पहले उन्के नाम यग्य मूर्ति था और वे अद्वैति थे। एक बार वे गंगा स्नान के लिये निकले थे और वहाँ कई विद्वानों को हराय और मायावाद सन्यासी बन गये। उनके अपार शस्त्र विद्या के कारण वे प्रख्यात हुए और कई लोग उन्के शिष्य हुए। एम्पेरुमानार के कीर्ति के बारे मे सुन कर, यग्य मूर्ति उनसे विवाद करने चाहते थे। वे कई ग्रन्थ को तयारी करके उनके शिष्यों के साथ एम्पेरुमानार से मिलने के लिए श्रीरंगं आये थे।
एम्पेरुमानार् उनको स्वागत किये और 18 दिन विवाद के लिए तैयारी किये। यग्यमूर्ति ने घोषित किया कि यदी उनके हार हुआ तो वे अपने नाम को एम्पेरुमानार के दर्शन के नाम में बदलेंगे और एम्पेरुमानार के पादुकों को सिर पर ले जायेंगे। एम्पेरुमानार ने पराजय होने पर ग्रन्थों को न छूने का प्रतिज्ञा किया।
विवाद शुरू हुआ और 16 दिन हो गये। दोनों बहुत तेज और अर्थपूर्ण ढंग से विवाद कर रहे थे जैसे दो हाथियों एक दुसरे से लड रहे थे। 17त् के दिन यग्य मूर्ति मजबूत स्थिति मे थे जैसे लगा। एम्पेरुमानार् तनिक चिंतित हुए और अंत मे अपने आश्रम लोटे। उस रात उन्होने पेररुळाळन (अपने आराधना मूर्ति) से प्रर्थना किए कि , यदी वे हार गये तो नम्माळ्वार से स्थापित और आळवन्दार से बढाया उत्तम सांप्रदाय के पतना होगा। और वो पतन अपनेसे होना उनको बहुत दुःख हुआ। पेररुळाळन एम्पेरुमानार के स्वप्न मे प्रत्यक्ष हुए और निश्चिन्त रहने को बोले। ये सब एम्पेरुमानार को एक चतुर और बुध्दिमान् शिष्य ले आने के लिये उनके दिव्य लीला है। और एम्पेरुमानार को आळवन्दार के मायावद के खण्डन को उपयोग करने का सूचना दिया। इससे एम्पेरुमानार भगवान के महत्व को समझकर खुश हुए और सुबह तक एम्पेरुमान के नामस्मरन किये, फिर नित्यानुष्टानम् और तिरुवाराधनम् करके विवाद के अन्तिम दिन के लिये शानदार ढंग से आये। यग्यमूर्ति प्रज्ञावान होने के कारण, एम्पेरुमानार के तेजस को सही अर्थ मे समझे और एम्पेरुमानार के दिव्य कमल चरणों मे प्रर्थना किये और उनके पादुकों को अपने सिर पर रख कर , अपने हार को मान लिये। जब एम्पेरुमानार ने उनसे विवाद करने के लिये पूछे तो, तब यग्यमूर्ति ने बोले ” एम्पेरुमानार और पेरिय पेरुमाल (श्री रंगनातर्) दोनों अपने दृष्टि मे एक है, इसलिये विवाद का आवश्य नहीं है “. पर एम्पेरुमानार ने अपने अपार कृपा से एम्पेरुमान के सगुणत्वम को ओचितपूर्ण प्रमाणों से स्पष्ट किये। यग्यमूर्ति ने एम्पेरुमानार से फिर सही मार्ग मे सन्यास देने के लिये प्रर्थना की। एम्पेरुमानार ने उनको पहले शिका और यज्ञोपवीतम को त्याग करने का प्रयश्चित करने के लिये कहा (क्योंकी वे पहले मायावादि सन्यासि थे) । और उसको वे एहसान करते हैं। फिर एम्पेरुमानार ने यग्यमूर्ति को त्रिदण्डम्, काषायम् आदी देते हैं। पेररुळाळन् की सहायता के याद मे और एम्पेरुमानार के नाम लेने का इच्छा को पूरी करने के लिये उनको अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार नाम दिये। एम्पेरुमानार अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार् को नम्पेरुमाळ और अपने तिरुवारधन पेरुमाळ के पास रखकर नित्य पूजा करते आये. ये सब एम्पेरुमानार और अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार को सम्बंध करने के लिये एम्पेरुमान के दिव्य लील को दिखाने के लिये ले गये थे।
एम्पेरुमानार ने अरुळिचेयल (दिव्य प्रबन्ध) और उनके अर्थों को अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार को सिखाये। जब अनन्ताळ्वान, एच्चान आदी एम्पेरुमानार के शिष्य बनने के लिये श्रीरंगं पहुंचे थे, तब एम्पेरुमानार ने उन्को अरुळाळ पेरुमळ एम्पेरुमानार के पास पञ्च संस्कार लेने की सूचना दी। अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार अपने शिष्यों को निर्देश किये कि हमेशा सिर्फ़ एम्पेरुमानार मे चित्तलय करना ही उपाय है।
अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार को एम्पेरुमानार के प्रति विशेष कैंकर्य एम्पेरुमानार के आराधन एम्पेरुमान् पेररुळान को आराधन करना ही था।
एक बार दो श्रीवैष्णव यात्रियों ने श्रीरंगम् के गलि मे किसी को एम्पेरुमानार आश्रम के बारे मे पूछ रहे थे। तब एक स्थानिक ने जवाब मे पूछा “किस एम्पेरुमानार के आश्रम? “। इसको सुन कर वो श्रीवैष्णवों नेपूछा, “क्या हमारे सांप्रदाय मे दो एम्पेरुमानार है?” । स्थानिक ने बोला ” हाँ, एम्पेरुमानार् और अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार हैं” । अन्त मे श्रीवैष्णवों ने बोले ” हम उडयवर के आश्रम के बारे मे पूछ रहे हैं” और स्थानिक ने उनको आश्रम दिखाय। उस सम्वाद के समय अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार वहाँ थे और उन बातों को सुनकर वे दुःखित हुए और सोचे वो एम्पेरुमानार के नाम मे अलग कुटिल मे रहना ही इस संवाद का कारण है। तुरन्त वे अपने आश्रम् को विध्वंस करके, एम्पेरुमानार के पास गये और उनको वो संवाद के बारे मे बोलकर , एम्पेरुमानार के साथ ही रहने के लिये अनुमति माँगा। एम्पेरुमानार उनको वहाँ रहने के अनुमति दिये और सभि रहस्य अर्थों को सिखाया।
अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार, अपनी अपार करुणा से दो प्रबन्दं तमिळ मे लिखे। वे ज्ञान सारम और प्रमेय सारम। ये दो प्रबन्द हमारे सांप्रदाय के दिव्य और सुन्दर अर्थों को, विशेष मे आचार्य के वैभव को अत्यन्त सुन्दर रुप मे देता है। पिळ्ळै लोकाचार्य के श्रीवचन भूषणम् अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार के प्रबन्दों के विचारों को अनुकरण करते हैं। मामुनिगळ ने इन प्रबन्दों के सुन्दर व्याख्यान दिये थे।
भट्टर के बाल्यप्राय मे एक बार, वे आळ्वान से “सिरुमामनिसर” (तिरुवाळ्मोळि 8.10.3) के अर्थ अन्तर्विरोधि जैस लगते है, इसिलिये उसको समजाने को पुछे थे। तब आळ्वान ने बोले की ” श्रीवैष्णवों जैसा मुदलिआण्डान, एम्बार और अरुळाळ पेरुमाल एम्पेरुमानार ने भौतिक शरीर से छोटे थे पर नित्य सूरियों जैसे महान थे। ये चरित्र नम्पिळ्ळै के ईडु महा व्याख्यान मे भी लिखे थे।
इसिलिए हम सब अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार को याद करें, जिन्होने हमेशा एम्पेरुमानार के याद मे थे।
अरुळाळ पेरुमाळ एम्पेरुमानार के तनियन :
रामानुजार्य सच्शिष्यम् वेदासास्त्रार्त सम्पदम।
चतुर्ताश्रम सम्पन्नम् देवराज मुनिम् भजे॥
अडियेन् वैष्णवि रामानुज दासि
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